Monday, April 26, 2010

बिक्री कर? क्या वेट के युग में इसके बारे में भी जानना चाहेंगे?

प्रश्न: बिक्री कर किसके द्वारा लागू किया जाता है?
उत्तर: बिक्री कर राज्य अथवा केन्द्र सरकार द्वारा लागू किया जाता है। इस आधार पर बिक्री कर दो भागों में बाँटा जा सकता है – अ. राज्य बिक्रीकर, ब. केन्द्रीय बिक्रीकर।
प्रश्न: बिक्री कर किसके द्वारा वहन किया जाता है?
उत्तर: अंतिम रूप से बिक्रीकर आम नागरिक (उपभोक्ता) से वसूल किया जाता है।
प्रश्न: उपभोक्ता/आम नागरिक बिक्री कर कैसे चुकाता है?
उत्तर: बाजार में बिकने वाली वस्तुओं पर दुकानदार उनके वास्तविक मूल्य में पहले से ही बिक्री कर की राशि (राज्य बिक्रीकर और/अथवा केन्द्रीय बिक्रीकर) जोड़कर रखते हैं। अर्थात् दुकानदार जब एक वस्तु का मूल्य दस रूपये बताता है तो इस राशि में कर की राशि पहले से ही शामिल होती है, उपभोक्ता वस्तु खरीदते समय ही वह कर सरकार के लिए दुकानदार को चुका रहा होता है।
प्रश्न: दुकानदार बिक्री कर की राशि का क्या करता है?
उत्तर: दुकानदार एक निश्चित समय अंतराल से (मासिक/त्रैमासिक) एकत्रित बिक्री कर की राशि बैंक के माध्यम से सरकारी खजाने में जमा करा देता है।
प्रश्न: क्या प्रत्येक दुकानदार आवश्यक रूप से बिक्री कर की राशि सरकार को चुकाता है?
उत्तर: नही, दुकानदार जो बिक्रीकर विभाग में पंजीकृत है अथवा जिन्हें किसी नियम के अंतर्गत बिक्रीकर विभाग में पंजीकृत होना आवश्यक होता है वे ही बिक्रीकर की राशि सरकार के पास जमा करवाते हैं।
प्रश्न: कौनसे दुकानदारों को बिक्री कर विभाग में पंजीकृत होना आवश्यक है?
उत्तर: दुकानदार का बिक्रीकर विभाग में पंजीकृत होना राज्य बिक्रीकर के नियमों द्वारा निर्धारित होता है। दिल्ली क्षेत्र में उन सभी व्यवसायियों को बिक्रीकर विभाग में पंजीकृत होना आवश्यक है जिनकी वार्षिक कुल बिक्री दस लाख रूपये या अधिक है अथवा जिनको केन्द्रीय बिक्रीकर के अंतर्गत पंजीकृत होना आवश्यक है।
प्रश्न: बिक्री कर विभाग में पंजीकरण के लिए कौन कौन से दस्तावेज आवश्यक है?
उत्तर: बिक्री कर विभाग में पंजीकरण के लिए निम्न दस्तावेजों की आवश्यकता होती है – क. निर्धारित प्रार्थना पत्र, ख. पहचान पत्र तथा पते का प्रमाण, ग. जिस व्यवसायिक क्रिया के कारण पंजीकरण आवश्यक हुआ हो उससे सम्बद्ध सभी दस्तावेज, घ. प्रतिभूति, ङ. प्रतिभूति की राशि कम करने के लिए आवश्यक दस्तावेज।
प्रश्न: पंजीकरण के लिए निर्धारित फीस क्या है?
उत्तर: दिल्ली क्षेत्र में राज्य बिक्रीकर के लिए पंजीकरण के लिए निर्धारित शुल्क पाँच सौ रूपये है जिसे कोर्ट फीस के रूप में चुकाया जाता है।
प्रश्न: पंजीकरण के लिए आवश्यक प्रतिभूति की राशि एक लाख रूपये के अन्य विकल्प क्या हैं?
उत्तर: आवश्यक प्रतिभूति में अधिकतम पचास हजार रूपये की कमी निम्न दस्तावेजों के आधार पर की जा सकती है – अ. पेन कार्ड के आधार पर दस हजार रूपये, ब. पासपोर्ट के आधार पर दस हजार रूपये, स. भुगतान किए हुए अंतिम बिजली के बिल के आधार पर दस हजार रूपये, द. फिक्सड टेलीफोन के आधार पर पाँच हजार रूपये, य. व्यवसाय के स्थान के स्वामित्व के आधार पर तीस हजार रूपये, र. निवास स्थान के आधार पर बीस हजार रूपये।
प्रश्न: प्रतिभूति की राशि कैसे जमा कराई जाती है?
उत्तर: प्रतिभूति नकद, बैंक गारण्टी, प्राधिकृत किसी बैंक की जमा प्रोमिजरी नोट, नगर पालिका अथवा पोर्ट ट्रस्ट के ऋण पत्र आदि में से किसी भी रूप में दी जा सकती है।
प्रश्न: दुकानदार बिक्री कर का भुगतान व बिक्री कर की रिटर्न कब फाइल करता है?
उत्तर: बिक्रीकर का भुगतान तथा बिक्रीकर रिटर्न फाइल करने का समय दुकानदार की कर अवधि के आधार पर तय होता है।
प्रश्न: कर अवधि कितने प्रकार की होती है और उसका निर्धारण किस आधार पर होता है?
उत्तर: कुल चार प्रकार की कर अवधि होती है तथा उसका निर्धारण दुकानदार की वार्षिक बिक्री (रूपयों में) के आधार पर होता है –
अ. दस लाख या उससे कम (वार्षिक)
ब. दस लाख से अधिक पर पचास लाख तक (छ: माह)
स. पचास लाख से अधिक पर पाँच करोड़ तक (त्रैमासिक)
द. पाँच करोड़ से अधिक (मासिक)
प्रश्न: कर भुगतान की अंतिम तिथि क्या है?
उत्तर: 1. यदि कर अवधि त्रैमासिक, छ:माही अथवा वार्षिक है तो प्रत्येक क्वार्टर की समाप्ति का 28 वाँ दिन। 2. यदि कर अवधि मासिक है तो प्रत्येक माह की समाप्ति का 28 वाँ दिन।
प्रश्न: बिक्री कर रिटर्न फाइल करने की अंतिम तिथि क्या है?
उत्तर: 1. जिन व्यवसायियों की कर अवधि मासिक या त्रैमासिक है तो कर अवधि समाप्ति के 28 दिन के अन्दर।
2. जिन व्यवसायियों की कर अवधि छ: माह है तो कर अवधि समाप्ति के 45 दिन के अन्दर।
3. जिन व्यवसायियों की कर अवधि वार्षिक है तो कर अवधि समाप्ति के 75 दिन के अन्दर।
प्रश्न: नियत तिथि पर बिक्री कर की रिटर्न फाइल न करने पर क्या पेनल्टी लग सकती है?
उत्तर: सौ रूपये प्रतिदिन के हिसाब से अधिकतम दस हजार रूपये तक।
प्रश्न: बिक्री कर सरकार को सही व समय पर मिले इसके लिए आम नागरिक क्या सहयोग कर सकता है?
उत्तर: बिक्री कर की राशि सरकारी खाते में जमा कराने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को चाहे वे उपभोक्ता हो या व्यापारी सामान खरीदते समय दुकानदार से खरीदे गए सामान के लिए बिल की मांग करनी चाहिए। यह उल्लेखनीय है कि यदि बिना बिल के खरीदे गए सामान में बाद में कोई दोष पाया जाता है तो इसकी सुनवाई उपभोक्ता मंच में भी नही होती h

एम्प्लोयमेण्ट एक्सचेंज: कितने सार्थक?

प्रश्न: एक्सचेंज किसे कहते हैं?
उत्तर: ऐसे स्थान जहाँ पर कोई वस्तु या सेवा अन्य व्यक्तियों को उपलब्ध करवाने वाले तथा कुछ अन्य व्यक्ति जो वे वस्तु/सेवा प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं एकत्रित होते हैं आपसी अनुबन्धों द्वारा वे वस्तु/सेवा का आदान प्रदान करते हैं, एक्सचेंज कहलाते हैं।
प्रश्न: एम्प्लोयमेण्ट एक्सचेंज (रोजगार कार्यालय) का क्या कार्य होता है?
उत्तर: एम्प्लोयमेण्ट एक्सचेंज में रोजगार प्राप्त करने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति अपने नाम पते तथा योग्यताएं दर्ज करवा देते हैं तथा दूसरी और ऐसे नियोक्ता जिनके पास रिक्त पद होते हैं उन रिक्त पदों की सूचना तथा उन पर नियुक्ति के लिए आवश्यक योग्यता के बारे में रोजगार कार्यालय को सूचित कर देता है, रोजगार कार्यालय इस प्रकार प्राप्त रिक्त पदों की सूचना योग्य बेरोजगार व्यक्तियों तक जिन्होंने अपने नाम व पते पहले से रोजगार कार्यालय में दर्ज करवा रखे हैं को पहुँचा देता है। इसके अतिरिक्त एम्प्लोयमेण्ट एक्सचेंज बेरोजगार लोगों का स्वरोजगार प्रारम्भ करने के लिए आवश्यक मार्ग दर्शन भी प्रदान करता है।
प्रश्न: रोजगार कार्यालय किसके द्वारा संचालित होता है?
उत्तर: मिनिस्ट्री ऑफ लेबर के द्वारा डायरेक्टर जनरल ऑफ एम्प्लोयमेण्ट एण्ड ट्रेनिंग के माध्यम से एम्प्लोयमेण्ट एक्सचेंज का संचालन किया जाता है।
प्रश्न: देश भर में कुल कितने एम्प्लोयमेण्ट एक्सचेंज हैं?
उत्तर: देश भर में कुल लगभग 900 एम्प्लोयमेण्ट एक्सचेंज हैं।
प्रश्न: क्या रोजगार कार्यालय रोजगार के लिए अवसर पैदा करता है?
उत्तर: नही, एम्प्लोयमेण्ट एक्सचेंज केवल विभिन्न नियोक्ताओं के पास पड़े रिक्त पदों की सूचना योग्य उम्मीदवारों तक पहुँचाने का कार्य करता है।
प्रश्न: कौनसे नियोक्ताओं को रिक्त पदों पर नियुक्ति करने से पहले रिक्त पदों की सूचना एम्प्लोयमेण्ट एक्सचेंज को देना आवश्यक है?
उत्तर: सार्वजनिक क्षेत्रों (सरकारी विभाग) के नियोक्ता के अपने विभाग में खाली पड़े पद पर नियुक्तियाँ करने से पहले उन नियुक्तियों की सूचना सम्बन्धित एम्प्लोयमेण्ट एक्सचेंज में देना आवश्यक होता है।
प्रश्न: क्या प्राइवेट सेक्टर के नियोक्ताओं को भी अपने खाली पदों पर नियुक्तियाँ करने से पहले एम्प्लोयमेण्ट एक्सचेंज को सूचित करना आवश्यक होता है?
उत्तर: 25 या अधिक कर्मचारी वाले प्र्राइवेट संस्थाओं के लिए सम्बन्धित सरकार चाहे तो कभी भी अधिसूचना जारी कर अपने रिक्त पदों पर नियुक्तियों से पहले एम्प्लोयमेण्ट एक्सचेंज को सूचित करना अनिवार्य कर सकती है।
प्रश्न: एम्प्लोयमेण्ट एक्सचेंज में उपरोक्त प्रकार से खाली पदों की सूचना देने के पश्चात क्या नियोक्ता उन पदों को एम्प्लोयमेण्ट एक्सचेंज के माध्यम से ही भरने के लिए बाध्य है?
उत्तर: नही, न सार्वजनिक न निजी संस्थान रिक्त पदों को भरने के लिए एम्प्लोयमेण्ट एक्सचेंज को माध्यम बनाने के लिए बाध्य नही है।
प्रश्न: क्या सभी प्रकार के रिक्त पद भरने के लिए एम्प्लोयमेण्ट एक्सचेंज को सूचित करना आवश्यक है?
उत्तर: नही, निम्न प्रकार की नियुक्तियों के लिए एम्प्लोयमेण्ट एक्सचेंज को सूचित करना आवश्यक नही है – अ. जो नियुक्तियाँ तीन माह से कम समय के लिए की जानी है, ब. जो नियुक्तियाँ प्रोमोशन के द्वारा अथवा उसी विभाग के अनावश्यक कर्मचारियों से की जानी है, स. जिन पदों पर नियुक्तियाँ केन्द्रीय या राज्य सेवा आयोग द्वारा की जानी है, द. जिन पदों पर मासिक आय 60 रूपये से भी कम हो।
प्रश्न: यदि कोई नियोक्ता एम्प्लोयमेण्ट एक्सचेंज में सूचना दिए बिना ही अपने पास के रिक्त पदों पर नियुक्तियाँ कर लेता है तो उसके विरुद्ध क्या कार्यवाही की जा सकती है?

उत्तर: ऐसे नियोक्ता पर पहली बार एम्प्लोयमेण्ट एक्सचेंज को सूचित किए बिना नियुक्तियाँ करने पर 500 रूपये तथा उसके बाद हर बार 1000 रूपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।

ट्रेड मार्क: क्या आपके नाम का भी सिक्का चलता है?

प्रश्न: ट्रेड मार्क क्या होता है?
उत्तर: किसी व्यक्ति या संस्था द्वारा बाजार में उपलब्ध करवाई जा रही वस्तुएं व सेवाएं अन्य व्यक्ति या संस्था द्वारा उपलब्ध कराई जा रही वस्तु या सेवा से भिन्न प्रकट करने के उपाय को ट्रेड मार्क कहते हैं। उदाहरण के लिए किसी बाजार में 100 अलग अलग कम्पनियाँ एक ही रंग व डिजाइन के जूते बिक्री के लिए उतारती है अब यदि कोई ग्राहक किसी विशिष्ट कम्पनी का जूता खरीदना चाहे तो उसके लिए यह कार्य तब तक सम्भव नही होगा जब तक वह विशिष्ट कम्पनी अपनी कोई विशिष्ट पहचान (लोगो, नाम, लेबल आदि) ट्रेडमार्क के रूप में पंजीकृत करा कर अपने जूतों पर उस ट्रेडमार्क का उपयोग न करे। इस तरह ट्रेडमार्क किसी वस्तु या सेवा का किसी विशिष्ट व्यक्ति या संस्था द्वारा बाजार में उपलब्ध करवाना इंगित करता है।
प्रश्न: ट्रेड मार्क किस प्रारूप में हो सकते हैं?
उत्तर: वर्तमान में ट्रेड्मार्क के कई प्रारूप स्वीकार किए जा रहे हैं। ये वस्तु का विशिष्ट आकार, डिजाइन, उसे डिब्बा बन्द करने का तरीका, रंगों का कोई संयोजन, शब्द, अंक कोई आविष्कृत शब्द, आवाज आदि में से कुछ भी हो सकते हैं।
प्रश्न: ट्रेड मार्क के लिए कौन आवेदन कर सकता है?
उत्तर: निम्न में से कोई भी ट्रेडमार्क के लिए आवेदन कर सकता है – अ. वस्तु का निर्माता, ब. सेवा प्रदाता, स. खुदरा विक्रेता, द. थोक विक्रेता.
प्रश्न: एक पंजीकृत ट्रेड मार्क के क्या लाभ है?
उत्तर: एक पंजीकृत ट्रेड मार्क के निम्न लाभ है –
अ. यह बाजार में गुडविल बनाता है, ब. व्यापार की बैलैंस सीट में इसे सम्पत्ति के रूप में रखा जा सकता है, स. पंजीकरण की शर्तों के अधीन एक पंजीकृत ट्रेड मार्क का स्वामी उसका एक मात्र उपयोग कर्ता बन जाता है, द. पंजीकृत ट्रेड मार्क के अनाधिकृत उपयोग के विरुद्ध ट्रेड मार्क का स्वामी सिविल वाद दायर कर सकता है, य. पंजीकृत ट्रेड मार्क के अनाधिकृत उपयोगकर्ता अपने बचाव में पंजीकरण से अनभिज्ञता का तर्क नही दे सकता।
प्रश्न: क्या किसी ट्रेड मार्क का पंजीकरण कराया जाना आवश्यक है?
उत्तर: नही, ट्रेड मार्क के पंजीकरण की कोई कानूनी अनिवार्यता नही है। बिना रजिस्ट्रेशन के भी कोई व्यापारी अपने किसी मार्क को ट्रेडमार्क के रूप में प्रचारित कर सकता है परंतु यदि अन्य व्यक्ति उस ट्रेडमार्क को अपने नाम से पंजीकृत करवा लेता है तो उसे ऐसा करने से रोका नही जा सकता। पंजीकरण होते ही उस ट्रेडमार्क के पंजीकृत स्वामी को ट्रेडमार्क के सम्बन्ध में अनन्य अधिकार मिल जाते हैं अत: कानूनी अनिवार्यता न होते हुए भी प्रत्येक व्यक्ति को अपने व्यवसाय से सम्बन्धित ट्रेड मार्क यदि कोई हो तो का पंजीकरण करा लेना चाहिए।
प्रश्न: क्या ट्रेड मार्क का पंजीकरण केवल भारत में ही सुरक्षा प्रदान करता है अन्य देशों में नही?
उत्तर: हाँ, भारत में किसी ट्रेडमार्क का पंजीकरण करवा कर केवल भारतीय सीमा में ही ट्रेड मार्क के सम्बंध में सुरक्षा प्राप्त की जा सकती है अन्य देशों में नही। भारत के कुछ अन्य देशों के साथ ट्रेडमार्क के समझौते भी किए हुए हैं ऐसे देशों में ट्रेडमार्क की सुरक्षा समझौतों की शर्तों के अनुसार प्राप्त की जा सकती है।
प्रश्न: ट्रेड मार्क के पंजीकरण का वैधानिक शुल्क क्या है?
उत्तर: ट्रेड मार्क के पंजीकरण का वैधानिक शुल्क पंजीकरण के आवेदन कर्ता, ट्रेडमार्क से सम्बन्धित वस्तुएं / सेवाएं आदि बातों पर निर्भर करता है। ट्रेडमार्क का किसी एक क्लास में पंजीकरण कराने के लिए न्यूनतम 2500 रूपये का वैधानिक शुल्क चुकाना पड़ता है।
प्रश्न: ट्रेड मार्क किस आधार पर तथा कितनी क्लासों में बाँटा गया है?
उत्तर: विभिन्न वस्तुओं / सेवाओं के आधार पर ट्रेड मार्क 42 क्लासों में विभाजित किए गये हैं। यदि किसी व्यवसायी द्वार ट्रेड मार्क का प्रयोग एक से अधिक क्लास वाली वस्तुओं/सेवाओं के सम्बन्ध में प्रयोग किया जाता है तो उसे अपने ट्रेडमार्क का पंजीकरण उन सभी क्लासों के अंतर्गत कराना चाहिए। प्रत्येक क्लास के लिए अलग वैधानिक शुल्क देना होता है।
प्रश्न: ट्रेड मार्क के पंजीकरण हेतु क्या सूचनाएं/दस्तावेज आवश्यक होते हैं?
उत्तर: ट्रेड मार्क के पंजीकरण हेतु निम्न सूचनाएं आवश्यक हैं –
अ. आवेदन कर्ता का नाम, ब. आवेदन कर्ता का पता, स. ट्रेडमार्क के फोटोग्राफ, द. सम्बन्धित वस्तु/सेवा का विवरण।
प्रश्न: ट्रेड मार्क के पंजीकरण हेतु आवेदन कहाँ किया जाता है?
उत्तर: देश भर में कुल छ: ट्रेड मार्क रजिस्ट्री है। पंजीकरण का आवेदन उस रजिस्ट्री में किया जाता है जो आवेदक पर क्षेत्राधिकारिता रखता है।
प्रश्न: ट्रेड मार्क के पंजीकरण में कितना समय लग जाता है?
उत्तर: वर्तमान में ट्रेड मार्क के पंजीकरण में छ: माह से दो वर्ष तक का समय लग जाता है।
प्रश्न: ट्रेड मार्क के पंजीकरण के आवेदन से पहले क्या उसकी उपलब्धता का पता लगाया जा सकता है?
उत्तर: एक ही प्रकार के अथवा मिलते जुलते ट्रेड मार्क अलग अलग व्यक्तियों के नाम पंजीकृत नही किए जा सकते। अत: ट्रेड मार्क का आवेदन करने से पहले उसकी उपलब्धता के बारे में जाँच कर लेनी चाहिए। ताकि पैसे व समय की बचत हो सके। उपलब्धता का पता करने के लिए अलग प्रार्थना पत्र लगाना होता है।
प्रश्न: क्या ट्रेड मार्क से सम्बन्धित वस्तु/सेवा में व्यवसाय आरम्भ करने से पहले ट्रेड मार्क के पंजीकरण का इंतजार करना होता है?
उत्तर: नही, परंतु ट्रेड मार्क के विज्ञापन देने में समय व पैसे की सुरक्षा के लिए ट्रेड मार्क का पंजीकरण व्यवसाय शुरू करते समय ही कर लेना चाहिए।
प्रश्न: क्या कोई व्यक्ति स्वयं द्वारा पंजीकृत ट्रेडमार्क के प्रयोग हेतु अन्य व्यक्ति को कुछ समय के लिए अथवा हमेशा के लिए अधिकृत कर सकता है?
उत्तर: हाँ, परस्पर अनुबन्ध के द्वारा कोई भी व्यक्ति स्वयं द्वारा पंजीकृत ट्रेड मार्क के प्रयोग हेतु अन्य व्यक्ति को कुछ समय के लिए अथवा हमेशा के लिए अधिकृत कर सकता है।
प्रश्न: ट्रेड मार्क के रूप में पंजीकरण कराने हेतु क्या नाम, शब्द, चित्र के सम्बन्ध में किन्हीं शर्तों का पूरा करना आवश्यक होता है?
उत्तर: हाँ, प्रत्येक नाम, शब्द, चित्र ट्रेड मार्क के रूप में पंजीकृत नही किया जा सकता। केवल वे नाम, शब्द, चित्र ट्रेड मार्क के रूप में पंजीकृत किए जा सकते हैं जो वैधानिक व अंतर्राष्ट्रीय समझौतों की शर्तों को पूरा करते हों। उदाहरण के लिए ऑलम्पिक, रेडक्रोस, ऑक्सीजन, कार्बन आदि शब्द ट्रेड मार्क के रूप में पंजीकृत नही किए जा सकते।
प्रश्न: क्या ट्रेड मार्क का पंजीकरण प्राप्त कर लेना मात्र पर्याप्त है?
उत्तर: नही, ट्रेड मार्क का पंजीकरण कराने के पश्चात उसका नवीनीकरण प्रत्येक दस वर्ष में आवश्यक होता है।
प्रश्न: पंजीकृत ट्रेड मार्क से मिलते जुलते या समान प्रकार के अन्य ट्रेड मार्क अन्य व्यक्ति प्राप्त नही कर पाए इसके लिए क्या सावधानी रखनी चाहिए?
उत्तर: ट्रेडमार्क रजिस्ट्री समय समय पर ट्रेड मार्क के नये आवेदन अपने जर्नल में प्रकाशित करती है। कोई व्यक्ति अपने द्वारा पंजीकृत ट्रेडमार्क के समान या मिलते जुलते अन्य ट्रेडमार्क के पंजीकरण के सामने आने पर उसके विरुद्ध आपत्ति दर्ज कराई जा सकती है।
प्रश्न: क्या ट्रेड मार्क के नियमन व निगरानी के लिए कोई अंतर्राष्ट्रीय संस्था भी है?
उत्तर: अंतर्राष्ट्रीय बौद्धिक सम्पदा संगठन (डब्ल्यू आई पी ओ) अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ट्रेडमार्क की निगरानी व नियमन करती है।
प्रश्न: अन्य व्यक्तियों द्वारा हमारे ट्रेड मार्क के अनाधिकार उपयोग को रोकने हेतु क्या उपचार प्राप्त है?
उत्तर: ट्रेडमार्क के दुरुपयोग कर्त्ता के विरुद्ध – अ. सिविल वाद दायर कर क्षतिपूर्ति प्राप्त की जा सकती है। ब. आपराधिक केस दर्ज किया जा सकता है।

क्रेडिट इंफोर्मेशन रिपोर्ट: हमारी इज्जत का कच्चा चिट्ठा

प्रश्न: क्रेडिट इंफोर्मेशन रिपोर्ट क्या है?
उत्तर: किसी व्यक्ति द्वारा विभिन्न बैंकों व वित्तीय संस्थानों से प्राप्त किए हुए ऋणों को वापस चुकाने का (ट्रैक रिकॉर्ड) संक्षिप्त विवरण उस व्यक्ति की क्रेडिट इंफोर्मेशन रिपोर्ट कहलाता है। यह उन बैंकों व वित्तीय संस्थानों, जिनसे कि उस व्यक्ति ने पूर्व में या वर्तमान में ऋण प्राप्त कर रखा हो, से प्राप्त सूचना के आधार पर तैयार किया जाता है।
प्रश्न: क्रेडिट इंफोर्मेशन रिपोर्ट का उद्देश्य क्या है?
उत्तर: बैंकों द्वारा न वसूल हो सकने वाले ऋण अथवा ऐसे ऋण जिनकी वसूली तय समय व शर्तों के प्रतिकूल काफी विलम्ब व मुश्किल से हो पाती है को नॉन परफोर्मेशन ऍसेट (एन पी ए) कहते हैं। वर्तमान में बढ़ती हुई एन पी ए बैंकों के अस्तित्व के लिए एक बड़ा खतरा है। इस खतरे को कम करने के लिए किए गए कई उपायों में से क्रेडिट इंफोर्मेशन रिपोर्ट एक महत्वपूर्ण उपाय है। क्रेडिट इंफोर्मेशन रिपोर्ट के आधार पर बैंक ऋण के प्रार्थी की साख का अनुमान लगा लेते हैं तथा प्रार्थी को ऋण देने व न देने का अथवा किन शर्तों पर देने का आदि के बारे में एक उचित निर्णय ले सकती है। इस तरह से बैंक अपनी एन पी ए पर नियंत्रण रख सकती है।
प्रश्न: क्रेडिट इंफोर्मेशन रिपोर्ट कौन बना सकता है?
उत्तर: कम्पनी अधिनियम, 1956 के अंतर्गत पंजीकृत कम्पनी रिजर्व बैंक ऑफ इन्डिया से पंज़ीकृत होकर क्रेडिट इंफोर्मेशन रिपोर्ट बनाने का काम आरम्भ कर सकती है।
प्रश्न: क्रेडिट इंफोर्मेशन रिपोर्ट बनाने के लिए सूचनाएं कहां से प्राप्त होती है?
उत्तर: प्रत्येक बैंक व वित्तीय संस्थान जो ऋण प्रदान करने का व्यवसाय करती है को कम से कम एक क्रेडिट इंफोर्मेशन कम्पनी का सदस्य होना अनिवार्य है। क्रेडिट इंफोर्मेशन कम्पनी अपने सदस्यों से समय समय पर उनके ऋण ग्राहकों द्वारा प्राप्त ऋणों के सम्बन्ध में सूचनाएं प्रेषित करने के निर्देश देती है। इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति द्वारा प्राप्त ऋण के सम्बन्ध में सूचना बैंकों के माध्यम से क्रेडिट इंफोर्मेशन कम्पनियों को मिलती रहती है।
प्रश्न: क्या वर्तमान में भारत में कोई क्रेडिट इंफोर्मेशन कम्पनी है?
उत्तर: सी आई बी आई एल Credit Information Bureau (India) Limited इस समय भारत में यह काम कर रही है।
प्रश्न: क्रेडिट इंफोर्मेशन रिपोर्ट कोन प्राप्त कर सकता है?
उत्तर: बीमा कम्पनियाँ, टेलीफोन कम्पनियाँ, शेयर ब्रोकर, कोमोडिटी एक्सचेञ्ज के सदस्य, आदि विशिष्ट श्रेणी के सदस्य व संस्थाएं ही क्रेडिट इंफोर्मेशन रिपोर्ट प्राप्त कर सकती है।
प्रश्न: क्रेडिट इंफोर्मेशन रिपोर्ट में क्या सूचनाएं दी जाती है?
उत्तर: ऋण ग्राहक का सामान्य परिचय :
i. नाम
ii. पता व्यक्ति होने की दशा में :
iii. पहचान संख्या
iv. पासपोर्ट विवरण
v. मतदाता पहचान पत्र विवरण
vi. जन्म दिनाँक
vii. संस्था होने की दशा में :
viii. डी यू एन एस नम्बर
ix. पंजीयन संख्या
x. वैधानिक स्थिति : कम्पनी, साझेदारी फर्म, सोसाइटी आदि
ऋण का पूरा विवरण
पुन: भुगतान का विवरण
बकाया राशि
विभिन्न ऋण दाताओं द्वारा उस पर की गई कार्यवाही का विवरण
कोर्ट केसों का विवरण।

प्रश्न: क्या क्रेडिट इंफोर्मेशन रिपोर्ट में ऋण द्नेने या न देने के सम्बन्ध में राय प्रकट की जाती है?
उत्तर: क्रेडिट इंफोर्मेशन रिपोर्ट में सम्बन्धित व्यक्ति की साख के तथ्य मात्र प्रकट किए जाते हैं। ऋण दिए जाने या न दिए जाने के सम्बन्ध में कोई भी राय क्रेडिट इंफोर्मेशन रिपोर्ट में प्रकट नही होती है। ऋण दिया जाना या न दिया जाना उस बैंक या संस्था का स्वयं का निर्णय होता है जिससे ऋण / साख प्रदान करने का आवेदन किया गया है।
प्रश्न: यदि किसी क्रेडिट इंफोर्मेशन रिपोर्ट के आधार पर एक बैंक या संस्था ऋण देने से मना कर दे तो क्या अन्य बैंक भी ऋण या साख प्रदान नही करेंगे?
उत्तर: नही, प्रत्येक बैंक ऋण प्रदान करने में अपनी नीतियों का पालन करता है हर बैंक की ऋण देने की नीति अलग होती है अत: यदि किसी क्रेडिट इंफोर्मेशन रिपोर्ट के आधार पर एक बैंक ऋण देने से मना कर देता है तो आवश्यक नही है कि अन्य बैंक भी ऐसा ही करेंगे।
प्रश्न: क्रेडिट इंफोर्मेशन रिपोर्ट का क्या उपयोग है?
उत्तर: क्रेडिट इंफोर्मेशन रिपोर्ट का निम्न उपयोग है – अ. व्यक्ति अपनी स्वयं की साख सूचनाएं प्राप्त कर सकता है। ब. ऋण या साख दिए जाने का उचित निर्णय लिया जा सकता है। स. बार बार ऋण चुकाने में गलती करने वालों का पता चल जाता है। द. प्रतिकूल ग्राहकों से बचा जा सकता है तथा अच्छी साख वाले ग्राहकों का चयन किया जा सकता है।
प्रश्न: क्रेडिट इंफोर्मेशन रिपोर्ट तैयार करने की विधि क्या है?
उत्तर: किसी व्यक्ति की विभिन्न बैंकों के पास उपलब्ध साख सूचनाएं क्रेडिट इंफोर्मेशन रिपोर्ट तैयार करने वाली कम्पनी के पास पहुँचा दी जाती है। ये कम्पनियाँ पूर्व निर्धारित मानकों के आधार पर व्यक्ति विशेष से सम्बद्ध सभी सूचनाओं का विश्लेषण कर अंक प्रदान करती है। इस प्रकार किसी व्यक्ति को प्राप्त अंकों को उसकी क्रेडिट रेटिंग / स्कोरिंग कहते हैं। जिसका विभिन्न बैंकों, बीमा कम्पनियों, टेलीफोन कम्पनी आदि द्वारा अपनी अपनी नीतियों के आधार पर अर्थांवयन कर सम्बन्धित व्यक्ति को साख प्रदान करने या न करने का निर्णय लिया जाता है।
प्रश्न: किसी क्रेडिट इंफोर्मेशन रिपोर्ट का मूल्यांकन किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर: क्रेडिट इंफोर्मेशन रिपोर्ट के मूल्यांकन का कोई मानक तरीका नही है। यह पूर्णत: रिपोर्ट के उपयोगकर्ता के विवेक पर निर्भर करता है। एक ही क्रेडिट रिपोर्ट के आधार पर विभिन्न बैंक, बीमा कम्पनी, शेयर दलाल अलग अलग निर्णय ले सकते हैं।
प्रश्न: किस क्रेडिट इंफोर्मेशन रिपोर्ट को डिफाल्टर की श्रेणी में रख दिया जाता है?
उत्तर: क्रेडिट इंफोर्मेशन रिपोर्ट तैयार करने वाली कम्पनी किसी भी क्रेडिट रिपोर्ट को डिफाल्टर की श्रेणी में नही रखती। रिपोर्ट का उपयोग करने वाली बैंक, बीमा कम्पनी, शेयर दलाल आदि जब किसी क्रेडिट इंफोर्मेशन रिपोर्ट के आधार पर सम्बन्धित व्यक्ति के लिए प्रतिकूल निर्णय लेती है तो कहा जाता है कि क्रेडिट इंफोर्मेशन रिपोर्ट डिफाल्टर है। .
प्रश्न: क्या कोई व्यक्ति स्वयं की क्रेडिट इंफोर्मेशन रिपोर्ट प्राप्त कर सकता है?
उत्तर: कोई भी व्यक्ति जिसने किसी बैंक आदि में किसी ऋण के लिए आवेदन किया है उस बैंक को स्वयं पर तैयार की गई क्रेडिट इंफोर्मेशन कम्पनी से प्राप्त क्रेडिट रिपोर्ट की कॉपी देने को कह सकता है। बैंक क्रेडिट रिपोर्ट देने के लिए कुछ शुल्क ले सकती है।
प्रश्न: यदि किसी व्यक्ति की क्रेडिट इंफोर्मेशन रिपोर्ट में गलत सूचना पाई जाती है तो उसे ठीक कैसे करवाया जा सकता है?
उत्तर: कोई भी व्यक्ति जिसकी क्रेडिट रिपोर्ट में कोई सूचना गलत / अपूर्ण होती है वह व्यक्ति सीधे क्रेडिट इंफोर्मेशन रिपोर्ट तैयार करने वाली कम्पनी अथवा जिस बैंक या कम्पनी से सम्बन्धित सूचना में ऐसी कमी पाई जाती है उसे क्रेडिट रिपोर्ट ठीक करने के लिए कह सकता है।
प्रश्न: क्रेडिट इंफोर्मेशन रिपोर्ट उपलब्ध करवाने के लिए कितना शुल्क लिया जा सकता है?
उत्तर: क्रेडिट इंफोर्मेशन रिपोर्ट उपलब्ध करवाने के लिए पचास से सौ रूपये तक का शुल्क लिया जा सकता है।
प्रश्न: क्रेडिट इंफोर्मेशन रिपोर्ट तैयार करने वाली कम्पनी पर नियंत्रण कौन रखता है?
उत्तर: भारतीय रिजर्व बैंक क्रेडिट रिपोर्ट तैयार करने वाली कम्पनियों पर नियंत्रण रखता है।
प्रश्न: किसी व्यक्ति को क्रेडिट इंफोर्मेशन रिपोर्ट के क्या लाभ है?
उत्तर: क्रेडिट इंफोर्मेशन रिपोर्ट के आधार पर बैंक व अन्य कम्पनियाँ व्यक्ति की साख का अनुमान लगा कर उसे ऋण या अन्य सुविधा देने अथवा न देने के लिए कम समय में बिना ज्यादा जाँच पड़ताल के निर्णय ले पाती है। साथ ही अच्छे क्रेडिट स्कोरिंग वाले व्यक्तियों को आसान शर्तो पर विभिन्न सुविधाएं प्राप्त हो जाती है।
प्रश्न: क्रेडिट इंफोर्मेशन रिपोर्ट में सुधार लाने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर: बैंक, बीमा कम्पनी, टेलीफोन कम्पनी, शेयर ब्रोकर आदि को देय राशि तय समय पर बिना त्रुटि के चुकाते रहकर व्यक्ति अपनी क्रेडिट रिपोर्ट सुधार सकता है।

Sunday, April 25, 2010

कौन कहता है चैक डिसऑनर होना अपराध है?

प्रश्न: क्या किसी चैक को डिसऑनर करा देना मात्र अपराध है?
उत्तर: नही, किसी चैक को डिसऑनर करा देने मात्र से कोई अपराध कारित नही होता है। नेगोशिएबल इंस्ट्र्यूमेण्ट एक्ट की धारा 138 के अंतर्गत चैक डिसऑनर से सम्बन्धित अपराध निम्न घटनाओं की पूरी श्रृंखला के पश्चात ही घटित होना माना जाएगा।
अ. किसी चैक का जारी किया जाना। ब. उस चैक को बैंक में जमा करवाया जाना। स. अदाकर्त्ता बैंक द्वारा चैक बिना भुगतान के लौटा दिया जाना। द. चैक के जारी कर्ता को चैक की राशि मांगने के सम्बन्ध में लिखित नोटिस देना। य. चैक जारीकर्ता द्वारा उपरोक्त नोटिस प्राप्त होने के 15 दिन के भीतर चैक राशि का भुगतान न किया जाना।
इस प्रकार जब चैक डिसऑनर कराने वाले व्यक्ति द्वारा उपरोक्त प्रकार से 15 के भीतर चैक राशि का भुगतान कर दिया जाता है तो चैक डिसऑनर अपराध किया नही माना जाएगा।
प्रश्न: चैक डिसऑनर से सम्बन्धित लिखित नोटिस जारी करने की समय सीमा क्या है?
उत्तर: व्यक्ति द्वारा बैंक से किसी चैक का बिना भुगतान हुए लौट आने की सूचना प्राप्त होने के 30 दिन के भीतर नोटिस जारी हो जाना आवश्यक है।
प्रश्न: क्या लिखित नोटिस जारी किया जाना मात्र पर्याप्त है?
उत्तर: अपने दावे को मजबूत बनाने के लिए चैक जारी कर्ता के पास नोटिस का पहूँचना आवश्यक है।
प्रश्न: चैक जारीकर्ता को चैक राशि भुगतान करने हेतु कितना समय दिया जाना आवश्यक है?
उत्तर: उपरोक्त नोटिस के माध्यम से 15 दिन का समय दिया जाना आवश्यक है।
प्रश्न: चैक डिसऑनर से सम्बन्धित शिकायत करने की समय सीमा क्या है?
उत्तर: उपरोक्त 15 दिन की अवधि समाप्त होने के अगले तीस दिन के भीतर शिकायत किया जाना आवश्यक है।
प्रश्न: चैक डिसऑनर के सम्बन्ध में शिकायत कहाँ की जाती है?
उत्तर: जहाँ चैक डिसऑनर हुआ हो उस क्षेत्र पर क्षेत्राधिकार रखने वाले न्यायिक मजिस्ट्रेट / मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष।
प्रश्न: चैक डिसऑनर के सम्बन्ध में शिकायत दर्ज कराने के लिए क्या कोई शुल्क भी निर्धारित है?
उत्तर: 1.25 रूपए की कॉर्ट फीस के अतिरिक्त कोई शुल्क निर्धारित नही है।
प्रश्न: क्या किसी चैक डिसऑनर के सम्बन्ध में आपराधिक शिकायत तथा चैक की राशि की वसूली के लिए सिविल वाद एक साथ दायर किए जा सकते हैं?
उत्तर: हाँ, नेगोशिएबल इंस्ट्र्यूमेण्ट एक्ट की धारा 138 के अंतर्गत आपराधिक शिकायत के साथ ही चैक राशि की वसूली के लिए सिविल वाद दायर किए जा सकते हैं।
प्रश्न: चैक डिसऑनर के अपराध के सम्बन्ध में दण्ड के क्या प्रावधान हैं?
उत्तर: अपराध कारित किया जाना सिद्ध होने पर अपराधी को निम्न प्रकार दण्डित किया जा सकता है – अ. दो वर्ष तक का कारावास। ब. चैक राशि के दुगुने तक का जुर्माना। स. उपरोक्त दोनों।
प्रश्न: क्या चैक डिसऑनर के केस में समझौता किया जा सकता है?
उत्तर: शिकायत कर्ता द्वारा शिकायत लम्बित रहने के दौरान किसी भी समय समझौता किया जा सकता है।
प्रश्न: चैक डिसऑनर से सम्बन्धित केस जमानतीय है या अजमानतीय?
उत्तर: जमानतीय।
प्रश्न: यदि चैक डिसऑनर का अपराध किसी प्राइवेट लिमिटेड या लिमिटेड कम्पनी द्वारा किया जाता है तो सजा का भागीदार कौन होगा?
उत्तर: कम्पनी द्वारा चैक डिसऑनर के अपराध की दशा में कम्पनी तथा अपराध घटित होने के समय कम्पनी के व्यावसायिक क्रिया कलापों के जिम्मेदार प्रत्येक व्यक्ति अपराध के लिए दोषी होंगे, सजा के भागीदार होंगे। इनके अतिरिक्त सेक्रेटरी की सहमति, लापरवाही अथवा भागीदारी होनी सिद्ध हो जाए तो ऐसे डायरेक्टर, मैनेजर, सेक्रेटरी को भी अपराध का दोषी मान कर सजा दी जा सकती है।
प्रश्न: यदि चैक डिसऑनर का अपराध किसी साझेदारी फर्म द्वारा किया जाता है तो सजा का भागीदार कौन होगा?
उत्तर: कम्पनी की तरह ही साझेदारी की स्थिति में भी साझेदारी व्यवसाय के संचालने के लिए जिम्मेदार व्यक्ति तथा किसी साझेदार की भागीदारी, लापरवाही अथवा सहमति सिद्ध हो जाने पर उस साझेदार को भी दण्डित किया जा सकता है।
प्रश्न: चैक डिसऑनर के अपराध में किसी व्यक्ति को दोषी सिद्ध करने के लिए क्या चैक पर अंकित सारी सूचनाएं उस व्यक्ति की स्वयं की हैंड राइटिंग में होना आवश्यक है?
उत्तर: नही, चैक डिसऑनर के अपराध में व्यक्ति के हस्ताक्षर का सिद्ध होना मात्र पर्याप्त है, अन्य सूचनाएं भली छपी हो अथवा किसी और की हैण्ड राइटिंग में हो।
प्रश्न: यदि किसी व्यक्ति द्वारा जारी किए गए एक से अधिक चैक डिसऑनर हो जाते हैं तो क्या प्रत्येक चैक के लिए अलग अलग शिकायत दर्ज कराना आवश्यक है?
उत्तर: नही, शिकायत कर्त्ता चाहे तो एक ही शिकायत में सारे चैकों का विवरण देकर जारी कर्त्ता के विरुद्ध शिकायत दर्ज करवा सकता है।
प्रश्न: यदि किसी व्यक्ति के साइन किए हुए खाली चेक गुम हो जाए तो उसे क्या करना चाहिए?
उत्तर: अन्य व्यक्ति इस तरह से खोए हुए चैकों का गलत उपयोग नही करे इसके लिए सावधानी के तौर पर अपने बैंक तथा नजदीकी पुलिस स्टेशन दोनों को चैक खो जाने की सूचना देनी चाहिए।
प्रश्न: यदि किसी चैक पर कोई व्यक्ति फर्जी साइन करके उसे डिसऑनर करवा दे तो क्या करना चाहिए?
उत्तर: इस तरह के चैक के सम्बन्ध में जब भी कोई लिखित नोटिस प्राप्त हो तो उसके जबाब में इस तथ्य को प्रकट करने के साथ ही निकट के पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करानी चाहिए।
प्रश्न: यदि चैक से भुगतान में गलती की जगह इलेक्ट्रोनिक फण्ड ट्रांसफर में त्रुटि होने से समय पर राशि न चुकाई जाती है तो क्या इसे चैक डिसऑनर माना जाएगा?
उत्तर: हाँ, इलेक्ट्रोनिक फण्ड ट्रांसफर में त्रुटि भी चैक डिसऑनर के समान ही मानी जाएगी।
प्रश्न: एक बार चैक डिसऑनर के पश्चात यदि निर्धारित समय में लिखित नोटिस नही दिया जाता है तो क्या दूसरी या तीसरी बार चैक डिसऑनर होने का नोटिस दिया जा सकता है?
उत्तर: हाँ, यदि चैक जारीकर्ता दुबारा चैक भुनाने का विश्वास दिला कर उसे दुबार बैंक में जमा कराने की प्रार्थना करता है और इस बार भी चैक डिसऑनर हो जाता है तो चैक की राशि की माँग करते हुए निर्धारित समय सीमा में लिखित नोटिस जारी किया जा सकता है।
प्रश्न: यदि किन्हीं दो पक्षों के विवाद को निपटाने के लिए ऑर्बिट्रेशन का अनुबंध किया हुआ हो तो भी चैक डिसऑनर के सम्बन्ध में केस डाला जा सकता है?
उत्तर: हाँ, ऑर्बिट्रेशन का अनुबंध चैक डिसऑनर से सम्बन्धित शिकायत दर्ज करवाने से नही रोकता है।
प्रश्न: यदि चैक डिसऑनर की आपराधिक शिकायत दर्ज कराने की समय सीमा शिकायत दर्ज कराने से पहले ही समाप्त हो जाए तो क्या उपाय है?
उत्तर: ऐसी स्थिति में चैक की राशि प्राप्त करने के लिए सिविल वाद दायर किया जा सकता है।

Saturday, April 24, 2010

बैंकिंग लोकपाल ( Banking Ombudsman ) आपका सच्चा हमदर्दी

प्रश्न: ऑम्बुड्समैन किसे कहते हैं?
उत्तर: किसी सरकारी या गैर सरकारी संगठन तथा उस संगठन से व्यवहार करने वाले बाहरी व्यक्तियों के मध्य उत्पन्न विवादों को निपटाने के लिए चुने हुए विश्वस्त मध्यस्थ को ऑम्बुड्समैन कहते हैं। सामान्यत: ऑम्बुड्समैन के पद पर ऐसे व्यक्ति को ही नियुक्त किया जाता है जो संगठन से जुड़ा हो।
प्रश्न: बैंकिंग ऑम्बुड्समैन का क्या कार्य होता है?
उत्तर: वर्तमान में बैंकों के द्वारा अपने ग्राहकों को अनेक प्रकार की सेवाएं प्रदान की जाती है। ग्राहक यदि इन सेवाओं में कमी पाता है और इन कमियों को सम्बन्धित बैंक के स्तर पर दूर नही किया जाता है तो ग्राहक अपनी शिकायत बैंकिंग लोकपाल अर्थात् बैंकिंग ऑम्बुड्समैन के पास दर्ज करवा सकता है। इस प्रकार बैंकिंग ऑम्बुड्समैन बैंक स्तर पर सुनवाई न होने वाली ग्राहक की शिकायतों की सुनवाई का कार्य करता है।
प्रश्न: बैंकिंग ऑम्बुड्समैन के पद पर किस व्यक्ति को तथा किसके द्वारा नियुक्त किया जाता है?
उत्तर: बैंकिंग ऑम्बुड्समैन के पद पर चीफ जनरल मैनेजर या जनरल मैनेजर के स्तर के व्यक्ति की नियुक्ति रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा की जाती है।
प्रश्न: देश में कुल कितने बैंकिंग ऑम्बुड्समैन हैं तथा उनके पते कहाँ से प्राप्त किए जा सकते हैं?
उत्तर: देश में लगभग 15 बैंकिंग ऑम्बुड्समैन नियुक्त किए गए हैं तथा किसी बैंक की शाखा विशेष के विरुद्ध शिकायत किस बैंकिंग ऑम्बुड्समैन के पास की जा सकेगी उसका पता उस शाखा परिसर में आम लोगों की सूचना के लिए चिपकाया जाना आवश्यक है। यदि शाखा परिसर में कहीं भी ऐसी सूचना नही मिलती है तो इसे शाखा प्रबन्धक से प्राप्त किया जा सकता है।
प्रश्न: किस विषय के सम्बन्ध में बैंकिंग ऑम्बुड्समैन के पास शिकायत दर्ज की जा सकती है?
उत्तर: निम्न में से किसी भी तरह की बैंकिंग सेवा की कमी के सम्बन्ध में बैंकिंग ऑम्बुड्समैन के समक्ष शिकायत दर्ज की जा सकती है –
1. किसी चैक, ड्राफ़्ट या बिल के बैंक द्वारा न भुनाने या भुनाने में असामान्य विलम्ब के लिए। 2. किसी व्यक्ति द्वारा बड़ी मात्रा में छोटी राशि के नोट जमा करने से इंकार करने या इसके लिए अलग से शुल्क वसूलने पर। 3. सिक्कों को स्वीकार करने से इंकार करने पर या इसके लिए अलग से शुल्क वसूलने पर। 4. ड्राफ्ट, पे ओर्डर या बैंकर्स चैक जारी करने से इंकार करने पर या इसमें असामान्य विलम्ब होने पर। 5. कार्य दिवसों के कार्य घण्टों में काम करने से इंकार करने पर। 6. लिखित रूप से कोई बैंकिंग सेवा प्रदान करने का वचन देकर मुकरने पर। 7. बिना किसी उचित कारण के डिपोजिट खाता खोलने से इंकार करने पर। 8. ग्राहक को बिना सूचित किए कुछ अतिरिक्त या नये शुल्क वसूलने पर। 9. रिजर्व बैंक द्वारा ए टी एम / डेबिट कार्ड / क्रेडिट कार्ड पर जारी दिशा निर्देशों का पालन न करने पर। 10. पेंशन की राशि सम्बन्धित व्यक्तियों को चुकाने में देरी करने पर। 11. खाता बिना पूर्व सूचना दिए जबरदस्ती बन्द करने पर। 12. ऋण के आवेदन को बिना उचित कारण बताए अस्वीकार करने पर। 13. रिजर्व बैंक द्वारा समय समय पर जारी दिशा निर्देशों का पालन न करने पर। 14. ई बैंकिंग या क्रेडिट कार्ड से सम्बन्धित सेवाओं में दोष पाए जाने पर... आदि ।
प्रश्न: बैंकिंग ऑम्बुड्समैन के समक्ष शिकायत किस स्थिति में दर्ज की जा सकती है?
उत्तर: निम्न में से किसी भी स्थिति में बैंकिंग ऑम्बुड्समैन के समक्ष शिकायत दर्ज की जा सकती है – 1. सम्बन्धित बैंक को अपनी शिकायत से अवगत कराने के उपरांत यदि एक माह तक बैंक की तरफ से कोई जबाब नही आता है। 2. यदि बैंक द्वारा शिकायत अस्वीकार कर दी जाती है। 3. शिकायत कर्त्ता बैंक के जबाब से असंतुष्ट रहता है।
प्रश्न: बैंकिंग ऑम्बुड्समैन के पास शिकायत दर्ज कराने की समय सीमा क्या है?
उत्तर: यदि बैंक द्वारा शिकायत का जबाब दिया गया हो तो जबाब प्राप्त होने के एक वर्ष के भीतर। 2. यदि जबाब नही मिला है तो बैंक को शिकायत दर्ज कराने के एक वर्ष एक माह की अवधि के भीतर बैंकिंग ऑम्बुड्समैन के पास शिकायत दर्ज करा देनी चाहिए।
प्रश्न: बैंकिंग ऑम्बुड्समैन के पास किस प्रकार शिकायत दर्ज की जा सकती है?
उत्तर: शिकायतकर्त्ता अपनी शिकायत सादे कागज पर लिखकर अथवा ई मेल के माध्यम से दर्ज करवा सकता है। शिकायत का किसी विशेष प्रारूप में होना आवश्यक नही है।
प्रश्न: शिकायत किस व्यक्ति द्वारा दर्ज की जा सकती है?
उत्तर: शिकायतकर्त्ता स्वयं या अपने किसी प्राधिकृत व्यक्ति के माध्यम से शिकायत दर्ज करवा सकता है।
प्रश्न: शिकायत कौनसे बैंकिंग ऑम्बुड्समैन के पास दर्ज की जानी चाहिए?
उत्तर: देश की बैंक शाखाएं अलग अलग बैंकिंग ऑम्बुड्समैन के क्षेत्राधिकार में आती है। जिस बैंक शाखा के विरुद्ध शिकायत हो उस पर क्षेत्राधिकार रखने वाले बैंकिंग ऑम्बुड्समैन के पास शिकायत दर्ज की जानी चाहिए।
प्रश्न: बैंकिंग ऑम्बुड्समैन के समक्ष दर्ज की जाने वाली शिकायत में क्या क्या सूचनाएं दी जानी चाहिए?
उत्तर: शिकायत में ये सूचनाएं दी जानी आवश्यक है – 1. शिकायत कर्त्ता का नाम व पता 2. बैंक शाखा या ऑफिस का नाम व पता जिसके विरुद्ध शिकायत दर्ज की गई है 3. शिकायत उत्पन्न करने वाले तथ्य 4. शिकायत कर्ता को हुई हानि व असुविधा की प्रकृति व मात्रा 5. चाही गई राहत 6. शिकायत के समर्थन में दस्तावेज 7. बैंक द्बारा शिकायत का कोई जबाब प्राप्त ना हुआ हो तो उसका विवरण।
प्रश्न: बैंकिंग ऑम्बुड्समैन के पास शिकायत दर्ज कराने के लिए क्या कोई शुल्क भी चुकाना होता है?
उत्तर: नही, बैंकिंग ऑम्बुड्समैन द्वारा शिकायत की सुनवाई के लिए कोई शुल्क नही लिया जाता है।
प्रश्न: बैंकिंग ऑम्बुड्समैन शिकायत का निस्तारण किस प्रकार करता है?
उत्तर: 1. शिकायत की एक प्रति सम्बन्धित बैंक को प्रेषित की जाती है। 2. ऑम्बुड्समैन बैंक व शिकायत कर्त्ता के लिए मध्यस्थ के रूप में कार्य कर शिकायत को समझौते द्वारा निपटाने का प्रयास करता है। 3. समझौता न हो पाने की स्थिति में दोनों पक्षों की सुनवाई कर शिकायत पर आदेश पारित कर दिया जाता है।
प्रश्न: क्या बैंकिंग ऑम्बुड्समैन का आदेश अंतिम होता है और उसके विरुद्ध कोई भी अपील नही की जा सकती ?
उत्तर: नही, शिकायत कर्त्ता व बैंक में से कोई भी पक्ष यदि बैंकिंग ऑम्बुड्समैन के निर्णय से संतुष्ट नही हो तो वह रिजर्व बैंक के किसी गवर्नर के समक्ष अपील दायर कर सकता है। ऑम्बुड्समैन के आदेशों की प्रति प्राप्त होने के 30 दिन के भीतर अपील करनी आवश्यक होती है।
प्रश्न: बैंकिंग ऑम्बुड्समैन द्वारा किस प्रकार की राहत प्रदान की जाती है?
उत्तर: बैंकिंग ऑम्बुड्समैन अपने आदेश द्वारा शिकायत कर्त्ता को हुए वास्तविक नुकसान की भरपाई करने के लिए बैंक को निर्देश दे सकता है तथा क्रेडिट कार्ड से सम्बन्धित शिकायत होने पर शिकायत कर्ता को एक लाख रूपये तक की क्षतिपूर्ति समय तथा मानसिक हर्जे की एवज में प्रदान की जा सकती है।

Thursday, April 22, 2010

जागो, ग्राहक जागो अब तो आपकी सुनवाई होगी ...

प्रश्न: उपभोक्ता कौन होता है?
उत्तर: प्रत्येक व्यक्ति जो मूल्य के बदले में वस्तु या सेवाओं का क्रय करता है उपभोक्ता कहलाता है। क्रय के समय तुरंत मूल्य का भुगतान आवश्यक नही है। मूल्य के भुगतान का वचन दिया जाना भी उपभोक्ता होने के लिए पर्याप्त है। उल्लेखनीय है कि यदि वस्तुओं व सेवाओं का क्रय किसी व्यावसायिक उद्देश्य अथवा पुनर्विक्रय के लिए किया जाता है तो क्रेता को उपभोक्ता नही माना जाएगा लेकिन यदि ऐसी वस्तुएँ या सेवाएँ पूर्णत: अपनी आजीविका कमाने के लिए स्वरोजगार में प्रयुक्त करने हेतु क्रय की जाती है तो ऐसे क्र्रेता को उपभोक्ता की श्रेणी में ही रखा जाएगा।
प्रश्न: उपभोक्ता विवाद किसके द्वारा दायर किया जा सकता है?
उत्तर: निम्न में से किसी के भी द्वारा उपभोक्ता विवाद दायर किया जा सकता है – 1. स्वयं उपभोक्ता के द्वारा, 2. स्वैच्छिक उपभोक्ता एसोशिएसन जो रजिस्टर्ड हो, 3. केन्द्र सरकार, 4. कई उपभोक्ताओँ के सामान्य उद्देशोँ का प्रतिनिधित्व करने वाले एक या अधिक उपभोक्ता, 5. राज्य सरकार द्वारा।
प्रश्न: किन परिस्थितियों में उपभोक्ता विवाद दायर किया जा सकता है?
उत्तर: निम्न परिस्थितियोँ में उपभोक्ता विवाद दायर किया जा सकता है – 1. उपभोक्ता द्वारा खरीदा गया सामान दोष युक्त हो, 2. उपभोक्ता द्वारा ली गई सेवाओं में कोई कमी पाई गई हो, 3. यदि उपभोक्ता द्वारा चुकाई गई कीमत वस्तु पर अंकित कीमत अथवा किसी कानून द्वारा नियत की गई राशि से अधिक हो, 4. किन्हीं कानूनी प्रावधानों के विपरीत सामान्य जनता को ऐसी वस्तु बिक्री के लिए पेश की जा रही हो जिसका उपयोग जीवन व सुरक्षा के लिए घातक सिद्ध हो सकता हो।
प्रश्न: क्या उपभोक्ता विवाद विक्रेता को बिना कोई सूचना दिए दायर कर सकते हैं?
उत्तर: उपभोक्ता को सर्वप्रथम वस्तुओं / सेवाओं के विक्रेता के पास लिखित रूप से अपनी शिकायत दर्ज करानी चाहिए। यदि वहाँ से शिकायत का निवारण नही होता है तो उपभोक्ता को यह देखना चाहिए कि जिस संस्था या कम्पनी से उसने वस्तु या सेवा क्रय की है उसका अपना कोई शिकायत निवारण तरीका हो तो उसे अपनाना चाहिए। यदि यहाँ से भी उपभोक्ता असंतुष्ट रहता है तो उपभोक्ता मंच में उपभोक्ता विवाद दायर करना चाहिए।
प्रश्न: क्या उपभोक्ता विवाद दायर करने के लिए किसी एडवोकेट की सेवाएं लेना आवश्यक है? उत्तर: शिकायतकर्ता अपनी शिकायत स्वयं अथवा अपने द्वारा प्राधिकृत व्यक्ति के माध्यम से उपभोक्ता मंच में जाकर अथवा डाक से अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है। इस कार्य के लिए किसी एडवोकेट की सेवाएं लेना आवश्यक नही है। परंतु शिकायत के निवारण के दौरान विपरीत पक्ष अपने एडवोकेट के माध्यम से कानूनी बारीकियोँ का अपने पक्ष में लाभ ले सकता है। अत: शिकायत दर्ज कराने से पहले एक बार किसी अनुभवी एडवोकेट से राय अवश्य ली जानी चाहिए।
प्रश्न: उपभोक्ता मंच में शिकायत दर्ज करवाने के समय कौन कौनसी सूचनाएं / दस्तावेज शिकायत के साथ दी जानी चाहिए?
उत्तर: उपभोक्ता मंच में शिकायत दर्ज करवाते समय निम्न सूचनाएं / दस्तावेज आवश्यक रूप से दर्ज करवानी चाहिए – 1. शिकायतकर्त्ता का पूरा नाम एवं पता, 2. जिसके विरुद्ध शिकायत की गई है उसका पूरा नाम एवं पता, 3. वस्तुओं / सेवाओं को क्रय करने की तिथि, 4. वस्तुओं / सेवाओं के लिए दिया गया कुल मूल्य, 5. खरीदी गई वस्तु अथवा सेवा का पूर्ण विवरण, 6. वस्तु / सेवा खरीदने के समय जारी किए गए बिल व रसीदें तथा विक्रेता से किया गया पत्राचार, 7. अपनी शिकायत का पूरा विवरण, 8. चाही गई राहत।
प्रश्न: क्या शिकायत दर्ज कराने के लिए कोई शुल्क भी निर्धारित किया गया है?
उत्तर: खरीदे गये सामान या सेवाओं के कुल मूल्य तथा माँगी गई क्षति पूर्ति के आधार पर उपभोक्ता शिकायत पर निम्न प्रकार से शुल्क देय होता है –
प्रश्न: उपभोक्ता शिकायत दर्ज कराने के लिए क्या समय सीमा निर्धारित की गई है?
उत्तर: शिकायत का कारण उत्पन्न होने के समय से दो वर्ष के भीतर उपभोक्ता को शिकायत दर्ज करा देनी आवश्यक होती है।
प्रश्न: उपभोक्ता विवाद का निस्तारण कितने समय में हो जाता है?
उत्तर: उपभोक्ता विवाद के निस्तारण में लगने वाला समय सम्बन्धित उपभोक्ता मंच में कार्यभार पर निर्भर करता है। यदि उपभोक्ता मंच के पास लम्बित मामलों की संख्या सामान्य है तो निस्तारण में लगने वाला समय तीन माह से दो वर्ष तक का हो सकता है।
प्रश्न: जिला उपभोक्ता मंच में कौन लोग मामले की सुनवाई करते हैं?
उत्तर: जिला उपभोक्ता मंच में निम्न लोग होते हैं जो मामले की सुनवाई करते हैं – 1. मंच का अध्यक्ष जो कि ऐसा व्यक्ति होगा जो वर्तमान में जिला न्यायाधिपति है, था, रह चुका है अथवा बनने के लिए योग्य है, 2. दो अन्य सदस्य जिनमें से एक आवश्यक रूप से महिला होगी और जो निम्न योग्यताएं रखते हों – क. 35 वर्ष की आयु के हों, ख. मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से स्नातक हों, ग. जिन्हें अर्थशास्त्र, विधि, वाणिज्य, लेखांकन, सार्वजनिक विषयों, उद्योग में से किसी क्षेत्र से जुड़ी समस्याओं से निपटने का दस वर्षों का अनुभव हो।
प्रश्न: उपभोक्ता मंच के कार्य दिवस व कार्य घण्टे क्या होते हैं?
उत्तर: उपभोक्ता मंच के कार्य दिवस या कार्य घण्टे वहीं होते हैं जो केन्द्र सरकार के कार्यालयों के होते हैं।
प्रश्न: क्रय की गई वस्तु में ऐसी त्रुटि जिसका दोषारोपण उपभोक्ता शिकायत में किया गया है तथा जिसे बिना वैज्ञानिक जाँच के ज्ञात नही किया जा सकता का निर्धारण किस प्रकार किया जाएगा?
उत्तर: उपभोक्ता मंच ऐसी वस्तु के नमूने उपभोक्ता से प्राप्त कर उसे सील बन्द करके अंवेषण हेतु प्रयोग शाला में भेज देगा। मंच द्वारा प्रयोगशाला को वस्तु के ऐसे दोष का पता लगाने का निर्देश दिया जाता है जिसकी उपभोक्ता ने शिकायत दर्ज की है। प्रयोगशाला इस कार्य के लिए आवश्यक जाँच कर अपनी जाँच रिपोर्ट उपभोक्ता मंच में पेश कर देती है।
प्रश्न: प्रयोगशाला में वस्तु की जाँच में आए खर्च का भुगतान किस के द्वारा किया जाता है?
उत्तर: उपभोक्ता मंच द्वारा शिकायतकर्ता को प्रयोगशाला से सम्बन्धित खर्चों के भुगतान करने के निर्देश दिए जा सकते हैं।
प्रश्न: क्या प्रयोगशाला द्वारा प्रस्तुत की गई जाँच रिपॉर्ट पर ऑब्जेक्शन दाखिल किए जा सकते हैं?
उत्तर: हाँ, उपभोक्ता अथवा विक्रेता में से जो प्रयोगशाला की जाँच रिपोर्ट से असंतुष्ट होता है वो इस सम्बन्ध में अपनी आपत्ति उपभोक्ता मंच के समक्ष दाखिल कर सकते हैं।
प्रश्न: उपभोक्ता मंच द्वारा किस प्रकार की राहत प्रदान की जाती है?
उत्तर: उपभोक्ता मंच द्वारा शिकायत के सही पाए जाने पर विक्रेता को निम्न में से किसी भी प्रकार का निर्देश देकर उपभोक्ता को राहत प्रदान की जा सकती है – 1. वस्तु में विद्यमान त्रुटि को दूर करने का, 2. वस्तु को बदलने का, 3. शिकायत कर्ता को वस्तु का मूल्य लौटाने का, 4. शिकायतकर्ता को हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति करने का, 5. सेवाओं में हुई कमी को दूर करने का, 6. अनुचित व्यावसायिक रीतियोँ को त्यागने का, 7. घातक वस्तुएं बिक्री न करने का, 8. शिकायतकर्ता द्वार शिकायत में खर्च किया गया धन चुकाने का।
प्रश्न: उपभोक्ता मंच के निर्णय के विरुद्ध अपील के क्या प्रावधान हैं?
उत्तर: जिला मंच के निर्णय के खिलाफ राज्य आयोग में निर्णय प्राप्त होने के 30 दिन के भीतर। राज्य आयोग के निर्णय के खिलाफ राष्ट्रीय आयोग में निर्णय प्राप्त होने के 30 दिन के भीतर। राष्ट्रीय आयोग के निर्णय के खिलाफ़ सर्वोच्च न्यायालय में निर्णय प्राप्त होने के 30 दिन के भीतर।





जन्म, विवाह और मृत्यु पञ्जीयन अब अनिवार्य हो गए हैं

प्रश्न: जन्म प्रमाण पत्र क्या होता है?
उत्तर: किसी व्यक्ति के जन्म के पञ्जीकरण के उपरांत सरकार द्वारा जारी किया गया प्रमाण पत्र जन्म प्रमाण पत्र कहलाता है। सभी सरकारी व गैर सरकारी संस्थानों द्वारा जन्म प्रमाण पत्र को सम्बंधित व्यक्ति की जन्म तिथि के प्रमाण पत्र के रूप में स्वीकार किया जाता है।
प्रश्न: जन्म प्रमाण पत्र बनवाने से क्या लाभ है?
उत्तर: जन्म प्रमाण पत्र सम्बन्धित व्यक्ति के जन्म तथा उसकी जन्म तिथि के साथ उस पर अंकित अन्य तथ्यों के प्रमाण के रूप में प्रयुक्त होता है। मतदाता पहचान पत्र, विद्यालय में प्रवेश की आयु, ड्राइविंग लाइसेंस, सरकारी नौकरियाँ, पूर्वजों की सम्पत्तियाँ विरासत में प्राप्त करने, अन्य पहचान पत्र बनवाने तथा शादी के प्रयोजन के लिए आयु तथा पहचान का निर्धारण करने में जन्म प्रमाण पत्र का उपयोग किया जाता है।
प्रश्न: किसी व्यक्ति के जन्म की सूचना किसके द्वारा रजिस्ट्रार को दी जानी चाहिए?
उत्तर: निम्न लिखित व्यक्ति अपने आस पास हुए किसी व्यक्ति के जन्म की सूचना जन्म मृत्यु पञ्जीकरण को देने के लिए उत्तरदायी है –
1. निवास स्थान (घर) पर हुए जन्म के सम्बन्ध में घर के मुखिया द्वारा तथा उसकी अनुपस्थिति जन्म के समय घर में उपस्थित सबसे बड़े वयस्क पुरुष। 2. चिकित्सालय में हुए जन्म के सम्बन्ध में उस चिकित्सालय के प्रबन्ध चिकित्सा अधिकारी। 3. जेल के जन्म के सम्बन्ध में उस जेल का प्रबन्धक। 4. छात्रावास, धर्मशाला, आदि में हुए जन्म के सम्बन्ध में इनके प्रबन्धक। 5. नवजात शिशु के सार्वजनिक स्थान पर परित्यक्त अवस्था में मिलने पर गाँव का मुखिया अथवा उस क्षेत्र के पुलिस थाने का इंचार्ज। 6. चलते हुए वाहन में जन्म के सम्बन्ध में उस वाहन के इंचार्ज।
प्रश्न: जन्म का पञ्जीयन करवाया जाना होता है?
उत्तर: जन्म का पंजीकरण सम्बन्धित गाँव, कस्बे, या जिले पर क्षेत्राधिकार रखने वाले जन्म मृत्यु पंजीयक के पास करवाना होता है।
प्रश्न: क्या जन्म का पंजीकरण कराना अनिवार्य है?
उत्तर: हाँ, भारत में प्रत्येक जन्म का पंजीकरण जन्म के 21 दिनों के अन्दर करवाना कानूनन अनिवार्य है।
प्रश्न: यदि कोई व्यक्ति किसी जन्म के पंजीकरण के लिए उत्तरदायी होते हुए भी ऐसा नही करता है तो क्या पेनल्टी / जुर्माना लगाया जा सकता है?
उत्तर: ऐसी दशा में दोषी व्यक्ति पर पचास रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
प्रश्न: शादी प्रमाण पत्र क्या होता है?
उत्तर: जन्म की तरह ही शादी प्रमाण पत्र शादी के पंजीयन का प्रमाण है।
प्रश्न: शादी का पंजीकरण करवाने का क्या उद्देश्य होता है?
उत्तर: शादी के पश्चात लड़की द्वारा अपने नाम में परिवर्तन करवाने, राशन कार्ड में नाम दर्ज करवाने, तथा वैवाहिक विवादों में शादी के तथ्य को प्रमाणित करने के लिए शादी प्रमाण पत्र की आवश्यकता होती है।
प्रश्न: क्या किसी हिन्दू विवाह का पंजीकरण न करवाने पर विवाह की वैधता प्रभावित होती है?
उत्तर: नही, हिन्दू विवाह का पंजीकरण न करवाने से भी विवाह कानूनन सही होता है तथा उसकी वैधता पर कोई फर्क नही पड़ता है।
प्रश्न: शादी के पंजीकरण का आवेदन कहाँ करना होता है?
उत्तर: शादी के पंजीकरण हेतु आवेदन निम्न में से किसी क्षेत्र पर क्षेत्राधिकार रखने वाले विवाह पंजीयक के पास करवाना चाहिए – जहाँ पर विवाह सम्पन्न हुआ हो। 2. जहाँ पर विवाह का कोई पक्षकार विवाह के ठीक छ: माह पूर्व तक निवास कर रहा हो।
प्रश्न: क्या हिन्दू विवाह का पंजीयन अनिवार्य है?
उत्तर: हिन्दू विवाह के पंजीयन करवाने की अनिवार्यता सम्बन्धित राज्य सरकार पर निर्भर करती है। कुछ राज्यों में हिन्दू विवाह का पंजीयन अनिवार्य है जब कि अन्य राज्यों में इसकी अनिवार्यता नही है।
प्रश्न: हिन्दू विवाह के पंजीयन की अनिवार्यता होते हुए भी किसी राज्य में पंजीयन नही करवाया जाए तो कितना जुर्माना लगाया जा सकता है?
उत्तर: पच्चीस रूपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
प्रश्न: मृत्यु प्रमाण पत्र क्या होता है?
उत्तर: किसी व्यक्ति की मृत्यु के पंजीकरण के उपरांत मृतक के निकटतम रिश्तेदार को सरकार द्वारा (मृत्यु पंजीयक द्वारा) जारी किया गया प्रमाण पत्र मृत्यु प्रमाण पत्र कहलाता है। मृतु प्रमाण पत्र पर सम्बन्धित व्यक्ति की मृत्यु की तारीख, मृत्यु का कारण आदि अंकित रहता है।
प्रश्न: मृत्यु पंजीयन के क्या लाभ है?
उत्तर: मृत्यु प्रमाण पत्र को किसी व्यक्ति की मृत्यु के प्रमाण के रूप में स्वीकार किया जाता है। मृतक की बीमा की राशि, मृतक के द्वारा अर्जित सम्पत्ति को उसके उत्तराधिकारियोँ में बांटने आदि उद्देश्यों में मृत्यु प्रमाण पत्र आवश्यक है।
प्रश्न: किसी व्यक्ति की मृत्यु की सूचना किसके द्वारा मृत्यु पंजीयक को दी जानी चाहिए?
उत्तर: किसी व्यक्ति की मृत्यु की सूचना पंजीयक को देने के लिए उत्तरदायी व्यक्ति का निर्धारण जन्म की स्थिति में उत्तरदायी व्यक्ति की तरह होता है अर्थात् परिस्थितिनुसार घर का मुखिया, जेल प्रबन्धक, चिकित्सालय प्रबन्धक, वाहन का इंचार्ज आदि व्यक्ति।
प्रश्न: क्या मृत्यु के पंजीकरण करवाना आवश्यक होता है?
उत्तर: हाँ, जन्म की तरह ही भारत में मृत्यु का पंजीकरण मृत्यु के 21 दिन के भीतर करवाया जाना आवश्यक होता है।
प्रश्न: मृत्यु पंजीकरण न करवाने के क्या परिणाम होते हैं?
उत्तर: किसी मृत्यु के पंजीकरण के लिए सूचना देने के लिए उत्तरदायी व्यक्ति द्वारा यदि पंजीयक को मृत्यु की सूचना नही दी जाती है तो उस व्यक्ति पर पचास रूपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
प्रश्न: मृत्यु के पंजीकरण की क्या प्रक्रिया होती है?
उत्तर: सम्बन्धित गाँव, कस्बे या जिले के मृत्यु पंजीयक को निर्धारित प्रारूप में मृत्यु की सूचना दिए जाने के उपरांत पंजीयक द्वारा आवश्यक छानबीन की जाती है। मृत्यु की सूचना के बारे में संतुष्ट होने पर पंजीयक मृत्यु का समुचित पंजीकरण कर लेता है।
प्रश्न: मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने के एवज में क्या मृत्यु पंजीयक द्वारा कोई शुल्क भी वसूल किया जाता है?
उत्तर: जो व्यक्ति मृत्यु की सूचना पंजीयक को देता है मृत्यु के पंजीकरण के उपरांत मृत्यु प्रमाण पत्र की एक प्रति उसे नि:शुल्क जारी की जाती है।

Wednesday, April 21, 2010

आयकर : काश! देश का हर नागरिक भर पाता।

प्रश्न: पेन कार्ड क्या होता है?
उत्तर: पेन का पूरा नाम परमानेण्ट ऍकाउण्ट नम्बर होता है। पेन कार्ड आयकर विभाग द्वारा जारी किया गया एक कार्ड होता है जिस पर सम्बन्धित व्यक्ति जिसके लिए इसे जारी किया गया हो की फोटो, उसका नाम, पिता का नाम, जन्मतिथि, हस्ताक्षर तथा उसे जारी किए गए परमानेण्ट ऍकाउण्ट नम्बर अंकित होते हैं।
प्रश्न: परमानेण्ट ऍकाउण्ट नम्बर का उद्देश्य क्या होता है?
उत्तर: परमानेण्ट ऍकाउण्ट नम्बर के माध्यम से आयकर विभाग किसी व्यक्ति के द्वारा किए जाने वाले बड़े आर्थिक व्यवहारों पर निगरानी रखी जा सकती है।
प्रश्न: परमानेण्ट ऍकाउण्ट नम्बर तथा पेन कार्ड प्राप्त करने के क्या फायदे हैं?
उत्तर: पेन कार्ड को सभी सरकारी तथा गैर सरकारी कार्यालयों में पहचान पत्र के रूप में स्वीकार किया जाता है। इसके अतिरिक्त आयकर विभाग ने वर्तमान में विदेश यात्रा, अचल सम्पत्ति के खरीदने के समय, बैंक अथवा वित्तीय संस्थानों से ऋण प्राप्त करने में, शेयर के क्रय, विक्रय के समय व्यक्ति के (अथवा संस्था) परमानेण्ट ऍकाउण्ट नम्बर का उल्लेख करना अनिवार्य कर दिया है।
प्रश्न: आयकर क्या है?
उत्तर: यह केन्द्रीय सरकार द्वारा किसी व्यक्ति की कुल आय पर वार्षिक आधार पर लगाया जाने वाला कर है।
प्रश्न: आयकर रिटर्न क्या है?
उत्तर: आयकर रिटर्न किसी व्यक्ति द्वारा वर्ष भर प्राप्त की गई कुल आय, कुल आय में मिली छूट, कुल आयकर, उसके द्वारा जमा अग्रिम कर, कर में से प्राप्त छूट तथा कुल देय कर अथवा प्राप्त कर की गणना होती है। जिन व्यक्तियों की वर्ष भर कुल प्राप्त आय कर योग्य न्यूनतम आय के बराबर या से उससे अधिक होती है उन्हें अपनी आयकर रिटर्न वार्षिक आधार पर सम्बद्ध आयकर विभाग में जमा करानी होती है।
प्रश्न: आयकर रिटर्न में कुल आय को किस प्रकार विभाजित किया जाता है?
उत्तर: व्यक्ति अथवा संस्था का दायित्व है कि वर्ष पर्यंत प्राप्त आय निम्न 5 भागों में विभाजित करके आयकर रिटर्न में दर्शित करे। 1. वेतन से प्राप्त आय, 2. मकान सम्पत्ति से प्राप्त आय, 3. व्यवसाय अथवा पेशे से प्राप्त आय, 4. पूँजी लाभ, 5. अन्य साधनों से प्राप्त आय।
प्रश्न: वित्तीय वर्ष (फाइनेंशियल ईयर) किसे कहते हैं?
उत्तर: एक अप्रेल से आरम्भ हो कर 31 मार्च को समाप्त होने वाली एक वर्ष की अवधि को वित्तीय वर्ष (फाइनेंशियल ईयर) कहते हैं।
प्रश्न: प्रीवियस ईयर और ऍसेसमेण्ट ईयर में क्या अंतर होता है?
उत्तर: किसी एक वित्तीय वर्ष (फाइनेंशियल ईयर) में प्राप्त आय के ऊपर आयकर का भुगतान तथा उससे सम्बन्धित आयकर रिटर्न को ठीक अगले वित्तीय वर्ष (फाइनेंशियल ईयर) में जमा करवाना होता है। जिस वित्तीय वर्ष (फाइनेंशियल ईयर) की कुल आय पर कर का भुगतान तथा उससे सम्बन्धित आयकर रिटर्न फाइल की जानी होती है उसे प्रीवियस ईयर कहते हैं तथा जिस वित्तीय वर्ष (फाइनेंशियल ईयर) में आयकर का भुगतान तथा आयकर रिटर्न फाइल करनी होती है उसे ऍसेसमेण्ट ईयर कहते हैं। उदाहरण के लिए -
1 अप्रेल, 2009 से आरम्भ हो कर 31 मार्च, 2010 को समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष (फाइनेंशियल ईयर) में प्राप्त आय के लिए प्रीवियस ईयर 1 अप्रेल, 2009 से आरम्भ हो कर 31 मार्च, 2010 (2009-10) होगा। तथा ऍसेसमेण्ट ईयर 1 अप्रेल, 2010 से आरम्भ हो कर 31 मार्च, 2011 (2010-11) होगा।
प्रश्न: क्या पेन कार्ड प्राप्त होते ही आयकर रिटर्न फाइल करना अनिवार्य हो जाता है?
उत्तर: नही, आयकर का भुगतान करना अथवा आयकर रिटर्न भरने की जिम्मेदारी तभी होगी जब वर्ष पर्यंत कुल आय कर योग्य आय सीमा में होती है। मात्र पेन कार्ड प्राप्त करने से आयकर रिटर्न फाइल करने की जिम्मेदारी नही बन जाती है।
प्रश्न: यदि कर योग्य आय होने पर भी कोई व्यक्ति आयकर का भुगतान नही करता है तो क्या आयकर विभाग इस बात का पता लगा सकता है?
उत्तर: जब भी कोई व्यक्ति बड़ी राशि में लेन देन करता है तो उसे अपने परमानेण्ट ऍकाउण्ट नम्बर का उल्लेख करना होता है। आयकर विभाग किसी भी परमानेण्ट ऍकाउण्ट नम्बर से किए जाने वाले सारे लेन देन का पता लगा कर उससे सम्बन्धित व्यक्ति की कुल आय का अनुमान लगा सकता है।
प्रश्न: अवयस्क की आय पर आयकर की गणना कैसे की जाती है?
उत्तर: निम्न अपवादों को छोड़कर अवयस्क की आय को उसके माता / पिता की आय में मिला कर उस पर आयकर की गणना करते हैं – 1. विकलांग अवयस्क, 2. यदि आय अवयस्क के शारीरिक श्रम, विशेष ज्ञान अथवा कुशलता के कारण प्राप्त हो रही हो।
प्रश्न: किसी पार्टनरशिप फर्म के पार्टनर की क्या अलग से आयकर रिटर्न फाइल करनी होती है?
उत्तर: आयकर के उद्देश्य से पार्टनरशिप फर्म तथा उसके पार्टनर को अलग अलग माना जाता है अत: किसी फर्म के पार्टनर की व्यक्तिगत रूप से प्राप्त कुल आय यदि कर योग्य आय तक पहूँच चाती है तो उसे अपनी अलग आयकर रिटर्न फाइल करनी होती है।
प्रश्न: यदि किसी वर्ष आय के स्थान पर हानि होती है तो भी इंकम टैक्स रिटर्न फाइल करना आवश्यक है?
उत्तर: यदि किसी वर्ष व्यवसाय में लाभ की जगह हानि होती है तो उस हानि को अन्य आय से कम किया जा सकता है तथा आवश्यकता पड़ने पर अगले वर्ष की आय से भी कम की जा सकती है यह सब करने के लिए आयकर रिटर्न का फाइल किया जाना आवश्यक होता है।

प्रश्न: व्हाइट इंकम क्या होती है?
उत्तर: व्यक्ति द्वारा अपने जीवन काल में इकट्ठी की गई कुल आय जिस पर सम्बन्धित वर्ष में आयकर का भुगतान किया जाता रहा हो इस प्रकार की आय को व्हाइट इंकम कहते हैं।
प्रश्न: यदि कोई व्यक्ति वर्ष में अपनी कुल आय 2,00,000 रूपये पर आयकर का भुगतान करता है तो उसमें से व्हाइट मनी क्या होगी?
उत्तर: कुल आय 200,000 रूपये व्हाइट मनी होगी। परंतु इसमें से उसके स्वयं व उस पर आश्रित व्यक्तियों को वर्ष पर्यंत खाने, रहने, कपड़ों व अन्य व्यक्तिगत खर्चों के लिए आवश्यक राशि कम करके शेष बचतें इकठ्ठी हों तो इस प्रकार का पैसा व्हाइट मनी कहलाता है।
प्रश्न: यदि गलती से कोई आय, आयकर रिटर्न में दिखाने से रह गई हो तो क्या करना चाहिए?
उत्तर: ऐसी स्थिति में नियत तिथि से पहले रिवाइज आयकर रिटर्न फाइल की जा सकती है। रिवाइज आयकर रिटर्न में अन्य आय जो मुख्य रिटर्न में दिखाई जा चुकी है के अतिरिक्त गलती से दिखाने से रह गई आय भी दिखा दी जाती है।
प्रश्न: आयकर अथवा आयकर रिटर्न फाइल करने के लिए क्या परमानेण्ट ऍकाउण्ट नम्बर का होना आवश्यक है?
उत्तर: हाँ, आयकर अथवा आयकर रिटर्न फाइल करने के लिए परमानेण्ट ऍकाउण्ट नम्बर का होना आवश्यक है।
प्रश्न: क्या पैन कार्ड पर अंकित सूचनाओं में गलती हो जाने अथवा परिवर्तित हो जाने पर नया पैन कार्ड प्राप्त किया जा सकता है?
उत्तर: हाँ, निर्धारित प्रार्थना पत्र तथा शुल्क के साथ आवश्यक प्रमाण के आधार पर पैन कार्ड पर अंकित सूचनाओं को बदलवाकर नया पैन कार्ड प्राप्त किया जा सकता है।
प्रश्न: क्या कोई व्यक्ति एक से अधिक परमानेण्ट ऍकाउण्ट नम्बर रख सकता है?
उत्तर: नही, एक से अधिक परमानेण्ट ऍकाउण्ट नम्बर का उपयोग करना गैर कानूनी है तथा ऐसा करने पर 10,000 रूपये तक का जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
प्रश्न: मुझे किसी जगह से पहले से ही आयकर काट कर आय के रूप में भुगतान प्राप्त हुआ है परंतु इस भुगतान को शामिल करके भी मेरी वर्ष पर्यंत कुल आय कर योग्य आय से कम है। क्या मैं इस तरह से काटे गए आयकर को वापस प्राप्त कर सकता हूँ?
उत्तर: हाँ, इस तरह से काटा गया आयकर प्राप्त (रिफण्ड) करने के लिए अपनी वर्ष पर्यंत आय दिखाते हुए आयकर रिटर्न फाइल करनी होगी।
प्रश्न: यदि नियत तिथि पर आयकर रिटर्न फाइल नही की जाती है तो क्या दायित्व बनता है?
उत्तर: यदि कर योग्य आय होने पर भी कोई व्यक्ति नियत तिथि पर आयकर रिटर्न फाइल करने पर चूक करता है तो उस पर 5 हजार रूपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
प्रश्न: स्क्रूटनी में केस आना किसे कहते हैं?
उत्तर: आयकर विभाग हर साल जमा की गई कुल आयकर रिटर्नों में से कुछ रिटर्नों की गहनता से जाँच करता है। इन रिटर्नों से सम्बन्धित व्यक्तियों को अपनी आय से सम्बन्धित सभी दस्तावेज आयकर अधिकारी के समक्ष पेश करने होते हैं। पूरी जाँच करने पर यदि आयकर रिटर्न में कोई त्रुटि पाई जाती है तो उस व्यक्ति को आयकर अधिकारी द्वारा निर्धारित कर राशि का भुगतान करना पड़ सकता है। इस सारी प्रक्रिया को ही स्क्रूटनी में केस आना कहते हैं।

Tuesday, April 20, 2010

सूचना का अधिकार: अधिकारों की सूचना पाने का शक्तिशाली माध्यम

प्रश्न: पब्लिक ऑथॉरिटी किसे कहते हैं?
उत्तर: सूचना के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत सूचना किसी पब्लिक ऑथॉरिटी से ही मांगी जा सकती है। प्राइवेट व्यक्ति व संस्था को सूचना के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत सूचना देने के लिए बाध्य नही किया जा सकता। अत: सूचना के अधिकार का प्रयोग करने के लिए पब्लिक ऑथॉरिटी का आशय समझना आवश्यक है। पब्लिक ऑथॉरिटी से अभिप्राय किसी भी ऑथॉरिटी संस्था, निकाय से है जिसकी स्थापना या निर्माण 1. संविधान के प्रावधानों के अंतर्गत हुआ हो, जैसे मतदान आयोग, यू पी एस सी आदि 2. किसी केन्द्रीय या राज्य अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत हुआ हो जैसे बी एस एन एल, रेल्वे विभाग, पुलिस विभाग आदि 3. गैर सरकारी संस्थान जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से केन्द्र या राज्य सरकार द्वारा वित्त पोषित हो।
प्रश्न: सूचना से क्या अभिप्राय है?
उत्तर: सूचना के अंतर्गत किसी पब्लिक ऑथॉरिटी के पास उपलब्ध कोई भी रिकॉर्ड, दस्तावेज, मेमो, ई मेल, सलाह, प्रेस विज्ञप्ति, आदेश, एग्रीमेण्ट, रिपोर्ट, नमूने आदि चाहे वे इलेक्ट्रोनिक फॉर्म में ही आते हों आते हैं।
प्रश्न: सूचना के अधिकार से क्या अभिप्राय है?
उत्तर: सूचना के अधिकार के अंतर्गत किसी पब्लिक ऑथॉरिटी के पास उपलब्ध सूचना का निरीक्षण करना, सूचना की प्रतिलिपि प्राप्त करना, तथा किसी सामान के प्रामाणित नमूने प्राप्त करना शामिल हैं।
प्रश्न: सूचना के अधिकार का प्रयोग करने के लिए प्रार्थना पत्र किसे सम्बोधित करके लिखा जाना चाहिए?
उत्तर: सूचना प्राप्त करने के लिए प्रार्थना पत्र सम्बन्धित पब्लिक ऑथॉरिटी के पब्लिक इंफोर्मेशन ऑफिसर को सम्बोधित करके लिखा जाना चाहिए। प्रत्येक पब्लिक ऑथॉरिटी में पब्लिक इंफोर्मेशन ऑफिसर के पद पर नियुक्त व्यक्तियों के नाम व पते सार्वजनिक किए हुए रहते हैं जिन्हें आसानी से प्राप्त किया जा सकता है।
प्रश्न: यदि गलती से सूचना प्राप्त करने का प्रार्थना पत्र किसी अन्य पब्लिक इंफोर्मेशन ऑफिसर को लिख दिया हो तो क्या सूचना प्राप्त हो जाएगी?
उत्तर: प्रत्येक पब्लिक इंफोर्मेशन ऑफिसर का यह दायित्व है कि यदि किसी कारण से कोई सूचना प्राप्त करने का प्रार्थना पत्र जो कि अन्य पब्लिक इंफोर्मेशन ऑफिसर को लिखा जाना था, उसे सम्बोधित कर दिया गया हो तो तुरंत ही उस प्रार्थना पत्र को प्रेषित करके सूचना मांगने वाले व्यक्ति को इस बारे में सूचित करे।
प्रश्न: सूचना प्राप्त करने के प्रार्थना पत्र में क्या क्या लिखा होना चाहिए?
उत्तर: यदि सूचना, सूचना के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत मांगी गई है तो 1. मांगी गई सूचना का विवरण, 2. सूचना के लिए चुकाए गए शुल्क का विवरण, 3. पता जहाँ सूचना पहुँचानी है।
प्रश्न: क्या सूचना ई मेल के जरिए भी माँगी जा सकती है?
उत्तर: हाँ । सूचना ई मेल के जरिये मांगी जा सकती है परंतु सात दिन के भीतर भीतर सूचना के लिए निर्धारित शुल्क जमा करा दिया जाना चाहिए।
प्रश्न: क्या कोई सूचना माँगते समय प्रार्थना पत्र में सूचना माँगे जाने का कारण दिया जाना आवश्यक है?

उत्तर: नही। सूचना मांगने के लिए सूचना का कारण बताया जाना आवश्यक नही है।
प्रश्न: मांगी गई सूचना देने के लिए पब्लिक इंफोर्मेशन ऑफिसर को कितना समय दिया जाता है?
उत्तर: मांगी गई सूचना पब्लिक इंफोर्मेशन ऑफिसर द्वारा तीस दिन के भीतर उपलब्ध कराई जानी आवश्यक है।
प्रश्न: यदि मांगी गई सूचना किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता या जीवन से सम्बन्धित है तो भी प्रार्थी को 30 दिन तक इंतजार करना होगा?
उत्तर: नही, ऐसी स्थिति में सूचना दिए जाने की समय सीमा दो दिन है यदि ऐसा तथ्य सूचना के प्रार्थना पत्र में अंकित कर दिया गया हो।
प्रश्न: यदि सूचना तय समय सीमा में नही दी जाती है तो इसका क्या परिणाम होगा?
उत्तर: तय समय सीमा में सूचना न दिया जाना सूचना दिए जाने से इंकार करने के समान माना जाएगा।
प्रश्न: कौन कौन सी पब्लिक ऑथॉरिटी को सूचना देने के लिए बाध्य नही किया गया है?
उत्तर: आई बी, डायरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलीजेण्स, नार्कोटिक कण्ट्रोल ब्यूरो, बी एस एफ, सी आर पी एफ, सी आई डी जैसी केन्द्रीय सुरक्षा एजेंसी तथा राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित सुरक्षा एवं जाँच एजेंसी से सूचना के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत सूचना नही मांगी जा सकती है। परंतु यदि मांगी गई सूचना का सम्बन्ध उपरोक्त पब्लिक ऑथॉरिटी में व्याप्त भ्रष्टाचार अथवा मानवीय अधिकारों के हनन से है तो ऑथॉरिटी सूचना देने के लिए बाध्य है।
प्रश्न: क्या कुछ सूचनाएं ऐसी भी है जिन्हें देने से सभी पब्लिक ऑथॉरिटी मना कर सकती है?
उत्तर: हाँ, सूचना के अधिकार के अंतर्गत निम्न प्रकार की सूचनाएं न दिए जाने के लिए सुरक्षित है तथा पब्लिक इंफोर्मेशन ऑफिसर ये सूचनाएं देने से इंकार कर सकता है। 1. जिन सूचनाओं के दिए जाने से भारत की सम्प्रभुता, एकता व सुरक्षा प्रभावित होती है अथवा अन्य देशों के साथ सम्बन्धों पर प्रभाव पड़ता हो। 2. सूचनाएं जिनका दिया जाना कॉर्ट के आदेश से प्रतिबन्धित किया हुआ हो। 3. जिन सूचनाओं के दिए जाने से संसद अथवा राज्यों के विधायकों के अधिकारों का हनन होता हो। 4. जिन सूचनाओं के दिए जाने से किसी की वैधिक सम्पत्ति के अधिकारों पर विपरीत प्रभाव पड़ता हो। 5. सूचनाएं जो पूर्णत: व्यक्तिगत हो अथवा जिनके दिए जाने से किसी पुलिस इंवेस्टीगेशन में बाधा उत्पन्न हो सकती हो आदि सूचनाएं ऐसी है जिन्हें देने से पब्लिक ऑथॉरिटी मना कर सकती है।
प्रश्न: सूचना दिए जाने के बदले पब्लिक ऑथॉरिटी क्या किसी शुल्क की मांग कर सकता है?
उत्तर: गरीबी रेखा के नीचे जीवन व्यतीत करने वाले व्यक्तियों द्वारा सूचना मांगने पर या तय समय सीमा से अधिक समय लगा कर सूचना दिए जाने की स्थिति, इन दो परिस्थितियों को छोड़कर अन्य स्थितियों में नाम मात्र का शुल्क वसूल किया जाता है।
प्रश्न: सूचना के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत किन परिस्थितियों में तथा किस तरह से पब्लिक इंफोर्मेशन ऑफिसर को दण्डित किया जा सकता है?
उत्तर: केन्द्र अथवा राज्य इंफोर्मेशन आयोग द्वारा निम्न परिस्थितियों में पब्लिक इंफोर्मेशन ऑफिसर को प्रतिदिन 250 रूपये के हिसाब से 25000 रूपये अधिकतम तक दण्डित किया जा सकता है- 1. सूचना मांगे जाने का प्रार्थना पत्र स्वीकार न किया जाने पर, 2. बिना समुचित कारण के सूचना दिए जाने में विलम्ब करने पर, 3. दुर्भावना वश सूचना दिए जाने से इंकार करने पर, 4. जान बूझकर गलत, अपूर्ण अथवा भ्रमित करने वाली सूचना देने पर, 5. मांगी गई सूचना के नष्ट कर देने पर, 6. सूचना के दिए जाने में किसी भी तरह से बाधा उत्पन्न करने पर उपरोक्त प्रकार से दण्डित किए जाने के अतिरिक्त सम्बन्धित सूचना आयोग द्वारा पब्लिक इंफोर्मेशन ऑफिसर के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही भी की जा सकती है।
प्रश्न: पब्लिक इंफोर्मेशन के आदेशों / निर्णय के विरुद्ध अपील के क्या प्रावधान हैं? (समय सीमा व स्थान)
उत्तर: पब्लिक इंफोर्मेशन ऑफिसर के आदेशों / निर्णय के विरुद्ध अपील के निम्न प्रावधान हैं – प्रथम अपील आदेश के प्राप्त होने अथवा तय समय सीमा के समाप्त होने के तीस दिन के भीतर सम्बन्धित पब्लिक ऑथॉरिटी में पब्लिक इंफोर्मेशन ऑफिसर से सीनियर ऑफिसर के पास और द्वितीय अपील प्रथम अपील का आदेश प्राप्त होने अथवा अपील निस्तारण के लिए निर्धारित समय सीमा के व्यतीत हो जाने के नब्बे दिन के भीतर यथा स्थिति, केन्द्रीय अथवा राज्य सूचना आयोग के पास।
प्रश्न: पब्लिक इंफोर्मेशन ऑफिसर द्वारा दण्ड स्वरूप चुकाई गई राशि किसे प्राप्त होगी?
उत्तर: पब्लिक इंफोर्मेशन ऑफिसर द्वारा दण्ड स्वरूप चुकाई गई राशि को सरकारी खजाने में जमा करा दिया जाएगा।

राशन कार्ड के बारे में 15 यक्ष प्रश्न ...

प्रश्न: सार्वजनिक वितरण प्रणाली क्या है?
उत्तर: सार्वजनिक वितरण प्रणाली केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा संयुक्त रूप से संचालित वह प्रणाली है जो यह सुनिश्चित करती है कि देश के प्रत्येक कोने में रहने वाले नागरिकों तक जीवनयापन के लिए आवश्यक आधारभूत सामग्री उचित मूल्य पर प्राप्त हो।
प्रश्न: आधारभूत सामग्री की श्रेणी में कौनसी वस्तुएं आती है?
उत्तर: ये वे वस्तुएं होती है जिनके मिले बिना मनुष्य का जीवित रहना मुश्किल हो जाता है। समय समय पर परिस्थितिनुसार अलग अलग वस्तुओं को आधारभूत सामग्री की श्रेणी में रखा जाता है; नमक, गेहूँ, आटा, दालें, घी, केरोसिन, कपड़े आदि वस्तुएं सामान्यत: इस श्रेणी में रखी जाती है।
प्रश्न: सार्वजनिक वितरण प्रणाली में केन्द्र सरकार क्या भूमिका निभाती है?
उत्तर: आवश्यक सामग्री मण्डियों से प्राप्त करना, जरूरत पड़ने पर दूसरे देशों से आयात करना, एकत्रित सामग्री को भण्डारों में रखना, उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर लाना ले जाना तथा जरूरत के अनुसार देश के विभिन्न हिस्सों में वितरित करना केन्द्र सरकार की जिम्मेदारी है।
प्रश्न: सार्वजनिक वितरण प्रणाली में राज्य सरकारों की क्या भूमिका होती है?
उत्तर: सार्वजनिक वितरण प्रणाली का वास्तविक संचालन राज्य सरकारों द्वारा होता है। केन्द्र से प्राप्त आवश्यक सामग्री को राज्य के भीतर विभिन्न हिस्सों में वितरित करना, राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। इस क्रम में जरूरतमंद व्यक्ति व परिवारों को चिह्नित करना, उन्हें राशन कार्ड जारी करना अथवा विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत अन्य कार्ड जारी करना, उचित मूल्य की दुकानें खोलना तथा उचित मूल्य की दुकानों से राशन कार्डों के जरिये आधारभूत सामग्री जरूरतमन्द तक पहुँचे इसकी निगरानी करना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है।
प्रश्न: सार्वजनिक वितरण प्रणाली का उद्देश्य क्या है?
उत्तर: बाजार में आवश्यक वस्तुओं की कीमतों को नियंत्रित रखना तथा आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को जीवित रहने के लिए कम मूल्यों पर अथवा बिना मूल्य के खाद्य व अन्य सामग्री उपलब्ध कराना ही सार्वजनिक वितरण प्रणाली का उद्देश्य है।
प्रश्न: सार्वजनिक वितरण प्रणाली का आकार क्या है?
उत्तर: देश भर में लगभग 4 लाख 70 हजार उचित मूल्य की दुकानों के जरिये लगभग 30 करोड़ जरूरतमंद व्यक्तियों को आवश्यक वस्तुएं कम मूल्य पर (सबसिडी पर) पहूँचाई जा रही है। तथा इस पूरे कार्य में सरकार लगभग 37 000 हजार करोड़ रूपये सबसिडी दे रही है।
प्रश्न: कौनसा सरकारी विभाग सार्वजनिक वितरण प्रणाली को लागू करता है?
उत्तर: राज्य सरकार का खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग (डिपार्टमेंट ऑफ़ फूड एण्ड सिविल सप्लाइज्) सार्वजनिक वितरण प्रणाली को लागु करता है।
प्रश्न: खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग सार्वजनिक वितरण प्रणाली को किस तरह से लागू करता है?
उत्तर: खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग सरकार की विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत निर्धारित श्रेणी के परिवारों को निर्धारित कार्ड जारी करता है। तथा उस कार्ड के आधार पर प्रति व्यक्ति के लिए निर्धारित मात्रा में आवश्यक सामग्री को निश्चित अंतराल से (सामान्यत: हर माह) जारी करता है।
प्रश्न: वर्तमान में खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग ने किस किस तरह के कार्ड जारी कर रखे हैं?
उत्तर: सभी परिवारों को राशन कार्ड, गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले लोगों को बी पी एल कार्ड तथा सबसे गरीब वर्ग को अंत्योदय अन्न योजना तथा अन्नपूर्णा योजनाओं के अंतर्गत अन्त्योदय अन्न योजना राशन कार्ड तथा अन्नपूर्णा राशन कार्ड जारी किए हुए हैं।
प्रश्न: राशन कार्ड प्राप्त करने के लिए कौनसे दस्तावेजों (डोक्यूमेण्ट्स) की आवश्यकता होती है?
उत्तर: राशन कार्ड प्राप्त करने के लिए निम्न दस्तावेजों की आवश्यकता होती है-
1. निर्धारित प्रार्थना पत्र, 2. तीन पासपोर्ट साइज फोटोग्राफ, 3. निवास प्रमाण पत्र, 4 शुल्क 25 रूपये आदि।
प्रश्न: परिवार के सदस्यों की संख्या में वृद्धि होने पर उनका नाम राशन कार्ड में दर्ज कराने के लिए किन दस्तावेजों की आवश्यकता होती है?
उत्तर: नये सदस्यों का नाम राशन कार्ड में दर्ज कराने के लिए निर्धारित प्रारूप में प्रार्थना पत्र के अतिरिक्त आवश्यक परिस्थितिनुसार निम्न दस्तावेज आवश्यक होते हैं – 1. शादी होने के कारण परिवार में आए नये सदस्य की शादी का प्रमाण पत्र, 2. नये सदस्य के परिवार में जन्म लेने पर उसका जन्म प्रमाण पत्र, 3. अन्य किसी स्थान से आकर परिवार के साथ रहने वाले सदस्य का पूर्व स्थान के राशन कार्ड से नाम हटा दिए जाने का प्रमाण पत्र आदि।
प्रश्न: किन व्यक्तियों को गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों की श्रेणी में रखा जाता है?
उत्तर: एक निश्चित आय वर्ग के परिवारों को गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों की श्रेणी में रखा जाता है। उदाहरण के लिए दिल्ली क्षेत्र में 24000 रूपये प्रतिवर्ष या इससे कम आय वाले परिवारों को गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों की श्रेणी में माना गया है।
प्रश्न: गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों को क्या सुविधाएं दी गई है?
उत्तर: गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों को अलग तरह के राशन कार्ड जारी कर उन्हें अन्य परिवारों की तुलना में आधे मूल्य तक पर आवश्यक वस्तुएं उपलब्ध कराई जा रही है।
प्रश्न: अंत्योदय अन्न योजना क्या है?
उत्तर: अंत्योदय अन्न योजना उन गरीबतम लोगों के लिए है जो वर्ष पर्यंत दोनों समय का भोजन प्राप्त करने में भी असमर्थ होते हैं। तथा जिनकी क्रय शक्ति इतनी कम होती है कि वे अनाज जैसी आवश्यक वस्तुओं को बी पी एल मूल्य पर भी नही खरीद सकते। अंत्योदय योजना के अंतर्गत इस तरह के परिवारों को 2 रूपये प्रति किलो की दर से गेहूँ, चावल की 35 किलोग्राम प्रतिमाह दिया जाना प्रस्तावित है।
प्रश्न: अन्नपूर्णा योजना क्या है?
उत्तर: यह योजना उन असहाय व्यक्तियों की है जिन्होंने 65 वर्ष की आयु प्राप्त कर ली है तथा जो सरकार से वृद्धावस्था पेंशन प्राप्त नही कर रहे हैं उनको 10 किलो अनाज प्रति माह नि:शुल्क दिया जाना प्रस्तावित है। उल्लेखनीय है कि जो व्यक्ति इस योजना का लाभ प्राप्त कर रहे हैं उन्हें वृद्धावस्था पेंशन के लिए विचारित नही किया जाता।